Thursday, May 6, 2010

अश्क कैसे बहाऊँ?

तेरी याद में
जब अश्कों का 
दरिया बहता था
तब अंतस में
बैठा तू ही तो 
तड़पता था
आज तेरा 
ये अंदाज़ 
समझ आया है
जब मैं और तू
दो रहे ही नहीं 
जब तू ही वजूदमें समाया है 
हर ओर तेरा ही
नूर समाया है
जहाँ मेरा "मैं"
ना नज़र आता है
 जब एकत्व को
अस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ?
तुझे अब कैसे
और तडपाऊँ?

21 comments:

  1. बहुत सुंदर शब्दों में ...... बहुत सुंदर कविता.....

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  2. वाह!आत्मविश्लेषण की बेहतरीन प्रस्तुति!

    बहित ही सुन्दर....

    कुंवर जी,

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  3. जब बजूद में ही समां जाए तो फिर " मैं " कहाँ बचता है.....और ना ही तड़पाने की ख्वाहिश...

    खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  4. अति सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  5. वंदना जी,

    बहुत गहरी बात कही है, बस इसको समझने की जरूरत है.

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  6. Kitni saraltase likh deti ho..!Koyi taamjhaam nahi...bas bhavna se bharpoor!

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  7. अति सुंदर रचना. इसके लिए आभार

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  8. जब एकत्व को
    अस्तित्व प्राप्त
    हो गया है
    फिर बता साँवरे
    अश्क अब
    कैसे बहाऊँ?
    ... ek honi hi mein purnata hai. esi aapne bakhubi abhivykt kiya hai.. bahut shubhkamnayne

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  9. बहुत सुंदर,खूबसूरत भाव

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  10. भिन्नता के सारे बंधन ,,,,
    यूँ टूटे ,,,,,
    अभिन्न एकत्व दिख रहा है ,,,,
    मै एक रंगी हो गया हूँ ,,,
    हर ओर तेरा ही तो प्रभुत्त्व दिख रहा है

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  11. सुन्दर रचना अच्छे भावो के साथ ....

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  12. bhav sahi pr prastuti aur auchhi ho skti thi

    aap ki sb kavitaon k bhav auchhe lge pr ye kavita se pratit na ho kr kuch aur se pratit hote hai

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  13. han ji
    jo dil main samaya hai use kaise dard diya ja sakta hai,
    bahut khoob

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  14. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना ! बधाई!

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  15. जब एकत्व को
    अस्तित्व प्राप्त
    हो गया है
    फिर बता साँवरे
    अश्क अब
    कैसे बहाऊँ ?

    -सुन्दर.

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  16. आपकी कविता अन्तस को छु गयी, एक प्रेमी और प्रेयसी के बीच के प्रेम की पराकाष्ठा को अभिव्यक्त करती आपकी कविता की हरेक पन्क्तिया प्रेम की उच्च स्वरूप को अभिव्यक्त करती है जिसमे प्रेमी और प्रेयसी आपस मे एक स्वरूप को प्राप्त कर लेते है. इस सन्दर्भ मे किशन जी और राधा के बीच का प्रसन्ग मुझे याद आता है जिसमे राधा जे एकिशन जी से पूछती है कि हे किशन -तुम कैसे हो, क्या यह अनुचित नही कि तुमने विवाह किसी और से किया और शादी किसी और से रचा ली?
    तब किशन जी कहते है कि हे राधिका विवाह के लिये दो लोगो की आवश्यकता होती है जिसमे एक पुरूष और दूसरी स्त्री होती है, तुम बताओ कि हममे से दूसरा कौन है? और जब हम दोनो मे दूसरा कोई है ही नही तो फिर विवाह किससे?

    प्रेम की पराकाष्ठा औरप्यार का उच्चतम स्वरूप, शायद आपने यही रेखान्कित करने का प्रयास किया है. राकेश

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