Tuesday, May 11, 2010

मन की थकान

तन की थकान 
तो उतर भी जाये 
मन की थकान
कहाँ उतारूँ
किस पेड़ को 
साया बनाऊँ
किस डाल पर
झूला डालूँ
कहाँ मैं यादों का 
घरौंदा  बनाऊँ
कौन सा अब
फूल खिलाऊँ 

किस देहरी पर 
माथा नवाऊँ
किस आँगन को
मैं बुहारूँ
किस मकां की 
दहलीज पर
मन की
रंगोली सजाऊँ


तन की टूटन
जुड़ जाएगी
मन की टूटन
कहाँ जुडाऊँ
किस थाली में
मन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का 
करूँ मैं  पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ

26 comments:

  1. बहुत खूब क्या बात है , शब्दो को पिरोनां तो कोई आपसे सिखे , लाजवाब ।

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  2. waah bhut khub vandna ji prem rash se bhari hui bhut sundar kavita
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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  3. तन की टूटन जुड़ जायेगी
    मन की टूटन कहाँ जुडाऊ
    बहुत खूब , वंदना जी

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  4. किस थाली में
    मन को परोसूँ
    कौन सा मैं
    दीप जलाऊँ
    किस देवता का
    करूँ मैं पूजन
    किस श्याम की
    राधा बन जाऊँ

    मन के हारे हार है,
    मन के जीते जीत!

    तन और मन का आपने बहुत ही
    सघनता से विश्लेषण करके
    बहुत ही सुन्दररूप में यह प्रश्नगीत रचा है!
    बधाई!

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  5. Vandana ! Behad sundar rachana!

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  6. किस थाली में
    मन को परोसूँ
    कौन सा मैं
    दीप जलाऊँ
    किस देवता का
    करूँ मैं पूजन
    किस श्याम की
    राधा बन जाऊँ
    ,....मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

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  7. रूह-आफजा से तो काम नहीं चलेगा इसके लिए आपको योग की शरण में जाना पड़ेगा। कविता अच्छी है।

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  8. मन की टूटन का बहुत सटीक विश्लेषण किया है ..बहुत अच्छी रचना....

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  9. अति सुन्दर... मन को छू लेने वाली रचना...

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  10. वंदना जी रचना हमेशा की तरह बेहतरीन लगी. ...आभार

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  11. वाह!जितनी जटिल असमंजस थी उतनी ही सरलता से बता दी गयी!ये शब्दों के चित्र.....

    अति सुन्दर!

    कुंवर जी,

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  12. तन की टूटन
    जुड़ जाएगी
    मन की टूटन
    कहाँ जुडाऊँ
    मन टूटता है तो --- इसलिये टूटने ही न दें
    बहुत सुन्दर रचना
    भाव गाम्भीर्य

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  13. सुंदर कविता...बहुत बढ़िया लगी...बधाई

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  14. लाजवाब ... लाजवाब .... लाजवाब ......

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  15. आनन्द आ गया, वन्दना जी.

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  16. एक अपील:

    विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  17. वाह, बहुत सुन्दर कविता है !

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  18. वंदना जी बहुत सुंदर रचना.
    इसके लिए आभार

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  19. सिर्फ एक शब्द, बेहतरीन !

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  20. वाह,बहुतअच्छा लिखा है आपने |आपकी प्रेमानुभूति स्तुत्य है क्योकि किसी का हो जाना या किसी को अपना बना लेना -ये दोनों घटनाएँ जीवन में दिव्यता सूचक हैं .

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  21. वाह,बहुतअच्छा लिखा है आपने |आपकी प्रेमानुभूति स्तुत्य है क्योकि किसी का हो जाना या किसी को अपना बना लेना -ये दोनों घटनाएँ जीवन में दिव्यता सूचक हैं .

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