Sunday, July 4, 2010

काहे भूल गए सांवरिया........

प्रियतम 
प्राण प्यारे 
नैना जोहते
बाट तिहारी 
तुझ बिन तडपत
रैन हमारी 
पी -पी पुकारत
सांझ सकारे 
तुझको खोजत
नैन हमारे 
आस की आस 
भी छूटन लागी 
प्रीत की प्यास 
भी टूटन लागी 
तुझ बिन प्यारे
बरसत हैं 
सावन भादों हमारे
कोऊ ना सन्देश 
पाऊं तिहारा
पाती भी 
सूनी आ जाती
बिन संदेस के 
संदेस दे जाती
भूल गए 
प्राणाधार हमारे
प्रेम के वो 
हिंडोले भूले
कर आलिंगन के
रस्ते भूले
तिरछी कमान के
तीर भी टूटे
अधरों के अवलंबन 
भी छूटे 
रूठ गए 
सांवरिया मोसे 
भूल गए वो
प्रेम बिछोने
खोजत- खोजत
मैं तो हारी
नैना भी
पथरा गए हैं
प्रीतम ,आने की
राह तकत हैं 
क्यूँ भूल गए सांवरिया  
सूनी पड़ी प्रीत अटरिया
काहे भूल गए सांवरिया........

14 comments:

  1. लाजवाब तरीके से विरह गीत लिखा आपने.. पर आकार कविता का क्यों??

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  2. विरह वेदना को खूब उतारा है शब्दों में...सुन्दर रचना ..

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  3. एक सक्रिय ब्लागर होने पर भी बहुत दिनो से शेष फिर और खानाबदोश पर आपका आना नही हुआ।
    ब्लागिंग के टिप्पणी आदान-प्रदान के शिष्टाचार के मामले मे मै थोडा जाहिल किस्म का इंसान हूं लेकिन आपमे तो बडप्पन है ना...!

    डा.अजीत
    www.monkvibes.blogspot.com
    www.shesh-fir.blogspot.com

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  4. भक्तिरस में सराबोर रचना पढ़कर तो हम भी भक्तिमय हो गये!
    --
    सुन्दर रचना!

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  5. आपकी रचनाओं में गहन भाव समग्र रूप से दर्शनीय होता है
    बहुत सुन्दर

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  6. सूनी पडी प्रीत अटरिया--- विरह की अथाह वेदना है इस रचना मे । रचना बहुत अच्छी लगी।शुभकामनायें

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  7. Bada nazagat bhara geet hai...aur anootha bhi!

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  8. बहुत सुंदर रचना.....

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  9. शब्द शब्द से पीड़ा झर रही है...अनुपम रचना...वाह...
    नीरज

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  10. virah ki vyatha ko shabdon mein dhaala hai aapane!...uttam rachanaa!

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  11. बहुत ही उम्दा रचना .....!!

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  12. lajawaab abhvyakti...........bahut sundar

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