Friday, October 1, 2010

पिया रूठ गए

सखी री 
पिया रूठ गए 
मो से सांवरिया
रूठ गए
मोहे अकेला
छोड़ गए
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत 
का से कहूँ मैं
जिया की बात 
कोऊ ना समझे 
पीर 
सखी री
प्रेम के सुलगते 
सागर की
हर उठती -गिरती 
लहरें 
प्रेम अगन 
बढाती हैं
कैसे बंधे 
अब धीर
सखी री
वो यशोदा 
का लाला 
धोखा दे गया 
भरे जोवन में
योगन बनाय गया
सखी का से कहूं
अब जिया की पीर
चैन मेरा 
ले गया
भरे बाज़ार 
धोखा दे गया
अब कैसे धरूँ 
मैं धीर
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया 
रूठ गए 

15 comments:

  1. क्यों रूठ गए ?
    पश्चाताप का स्वर अच्छा उभरा है रचना में ...

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  2. गोपी की पीड को बहुत सुंदरता से शब्दों में बाँधा है ....

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  3. विरह अगन का
    दावानल जला गए
    अब का से करूँ
    शिकायत
    का से कहूँ मैं
    जिया की बात
    कोऊ ना समझे
    पीर
    सखी री...
    -- --

    बहुत सुन्दर रचना है!
    वैसे भी मन की बात तो केवल
    सखी से ही कही जा सकती है!

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  4. बहोत ही अच्छी प्रस्तुति

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  5. बहुत ही भावपूर्ण रचना है .विरह की पीड़ा को आपने अभिव्यक्ति दी है.

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  6. बहुत ही भावपूर्ण रचना ....
    मजा आ गया पढ़कर
    प्रस्तुति के लिए बधाई

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  7. जिया की पीर को बड़े मार्मिक शब्द दे दिए हैं...गोपियों की वेदना को अभिव्यक्त करती कविता

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  8. कमाल है ...बहुत बढ़िया रचना !
    शुभकामनायें !!

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