सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
मोहे अकेला
छोड़ गए
विरह अगन का
दावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री
प्रेम के सुलगते
सागर की
हर उठती -गिरती
लहरें
प्रेम अगन
बढाती हैं
कैसे बंधे
अब धीर
सखी री
वो यशोदा
का लाला
धोखा दे गया
भरे जोवन में
योगन बनाय गया
सखी का से कहूं
अब जिया की पीर
चैन मेरा
ले गया
भरे बाज़ार
धोखा दे गया
अब कैसे धरूँ
मैं धीर
सखी री
पिया रूठ गए
मो से सांवरिया
रूठ गए
Friday, October 1, 2010
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बढ़िया .प्रस्तुति..... आभार.
ReplyDeleteअब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....
sundar rachna badhai
ReplyDeleteक्यों रूठ गए ?
ReplyDeleteपश्चाताप का स्वर अच्छा उभरा है रचना में ...
गोपी की पीड को बहुत सुंदरता से शब्दों में बाँधा है ....
ReplyDeleteविरह अगन का
ReplyDeleteदावानल जला गए
अब का से करूँ
शिकायत
का से कहूँ मैं
जिया की बात
कोऊ ना समझे
पीर
सखी री...
-- --
बहुत सुन्दर रचना है!
वैसे भी मन की बात तो केवल
सखी से ही कही जा सकती है!
बहोत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभावुक पंक्तियाँ।
ReplyDeletebahut sudar prastuti...
ReplyDeleteagain very good!!
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना है .विरह की पीड़ा को आपने अभिव्यक्ति दी है.
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना ....
ReplyDeleteमजा आ गया पढ़कर
प्रस्तुति के लिए बधाई
जिया की पीर को बड़े मार्मिक शब्द दे दिए हैं...गोपियों की वेदना को अभिव्यक्त करती कविता
ReplyDeleteकमाल है ...बहुत बढ़िया रचना !
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
ati uttam .
ReplyDeleteso sweet...
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