Tuesday, November 16, 2010

खामोशी की डगर और उम्मीद की किरण …………………………भाग 2

बार- बार उसे खींच कर उसी ओर ले जाता था और आँखें खुद को रोक ही नहीं पाती थीं उसे निहारने से ..........ना जाने कैसे वो पूजा के मोहपाश में बंधता जा रहा था............
अब आगे ................



यूँ तो पूजा एक विवाहित महिला थी जिसकी अपनी गृहस्थी थी . पति  , बच्चे , घर परिवार सब था. मगर उसकी हंसमुख और मिलनसार प्रवृत्ति उसे सबके आकर्षण का केंद्र बना देती थी. जो भी मिलता उसका कायल हुये  बिना नहीं रहता. फिर चाहे हमउम्र हो या बड़ा या बच्चा . वो तो सबसे ऐसे बात करती कि किसी को लगता ही नहीं कि उसकी उम्र क्या है या वो उनकी हमउम्र नहीं. सिर्फ थोड़े से समय में ही उसने सारे मोहल्ले के लोगो को अपने स्वभाव से अपना बना लिया था और कोई भी किसी भी समय उसके पास बेझिझक पहुँच जाता था .ऐसे ही एक बार रोहित अपनी माँ के कहने पर किसी काम से पूजा के पास गया . पूजा ने तो उससे उसके बारे में सारी जानकारी ले ली और फिर रोहित से अपने स्वभावानुसार ऐसे बात करने लगी जैसे वो उसकी कितनी पुरानी फ्रेंड हो . शुरू में तो रोहित संकोचवश थोड़ी बहुत बात करके आ गया. मगर बाद में कभी रास्ते में , कभी किसी काम से पूजा से सामना होता ही रहता था और वो उससे ऐसे बात करती कि रोहित को उससे बात करनाअच्छा लगने लगा . पूजा अपने कॉलेज के दिनों की अपनी मस्तियों के किस्से सुनाती और रोहित भी ऐसे सुनता जैसे सब कुछ जानता हो पूजा के बारे में .


रोहित को पूजा की बातें इतना आकर्षित करने लगीं  कि जब तक पूजा से किसी भी बहाने से बात ना हो जाए उसे चैन ही ना पड़ता. उसका तो दिन ही तभी होता जब पूजा की मधुर आवाज़ उसकी हँसी की खनक उसके कानों तक ना  पहुँच जाती. हालांकि  रोहित जानता था की  उसका और पूजा का कोई  मेल नहीं मगर फिर भी वो पूजा के व्यक्तित्व से इतना आकर्षित हो गया कि कोई भी काम होता पूजा से सलाह किये बिना नहीं करता. यहाँ तक कि दोनों के घर वाले भी अब तो हँसी उड़ाने  लगे थे कि कैसे थोड़े दिन में ही पूजा से घुलमिल गया जैसे बरसों से जानता हो मगर सब इस रिश्ते को एक देवर - भाभी के रिश्ते की तरह ही समझते थे.


और इधर रोहित जब से पूजा से मिला उसमे परिवर्तन आना चालू हो गया. अब उसमे पहले से ज्यादा गंभीरता आने लगी .उसके मन में भावों का सागर अँगडाइयाँ लेने लगता मगर कहे किससे ? कौन समझेगा? इसी उहापोह में धीरे धीरे रोहित ने अपने मन की बातें अपनी डायरी  में लिखनी शुरू कर दीं कविताओं के रूप में. ना जाने क्या- क्या लिखता रहता और कई बार पूजा को भी सुनाता तो वो बहुत खुश होती और रोहित को लिखने को प्रेरित करती रहती उसे क्या पता था कि रोहित के मन में क्या चल  रहा है या वो ये सब उसके लिए लिख रहा है . तो वो जैसे सबको वैसे ही रोहित से भी व्यवहार करती ..................


क्रमशः ....................

8 comments:

  1. रोचक होती जा रही है कहानी.. यदि आम अंत होगा तो रोहित पूजा के खुलेपन के आकर्षण को प्यार समझ लेगा और पूजा उसे दुनियादारी समझाएगी.. लेकिन देखते हैं.. कहाँ जाता है रोहित..

    ReplyDelete
  2. कथा का यह एपीसोड भी रोचक रहा!
    अगली कड़ी की प्रतीक्षा है!

    ReplyDelete
  3. रोचक, प्रतीक्षा अगले की।

    ReplyDelete
  4. Vandana!Jaldi jaldi agali kadi post kar do!Der karna to mujh jaise pathkon pe atyachaar hoga!:):)

    ReplyDelete
  5. कथा के दोनों अंक एक साथ देखे , जिज्ञासा अगले अंक की है

    ReplyDelete
  6. bahut achhi katha.. aglee kadi ka intjaar.. .. aapka katha preshan ka tareeka bahut achha laga ..bahut badi kahani padhne ke liye thoda samay jyada lagta hai,.....

    ReplyDelete
  7. अभी तो शुरू हुई है। सहज है। आगे कहां ले जाएंगी आप। यह देखना है।

    ReplyDelete