Thursday, December 2, 2010

बस गुजर रही है .......... उसके साथ ............. उसके बिन

ना वो मिला 
ना उसे मिलने की 
हसरत हमसे
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन 


वो अपना बनाता भी नहीं 
पास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी 
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन


वो सपने में आता भी नहीं
ख्वाब दिखाता भी नहीं
बाँसुरिया सुनाता भी नहीं
रास रचाता भी नहीं
मोहिनी मूरत दिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है 
उसके साथ
उसके बिन
  
कोई चाहत परवान
चढ़ाता भी नहीं
विरह वेदना 
मिटाता भी नहीं
एक बार दरस 
दिखाता भी नहीं
ह्रदय फटाता भी नहीं
मरना सिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ 
उसके बिन

25 comments:

  1. दर्द और संवेदना...
    सरल और गहरी कविता..
    अच्छी लगी..

    आभार

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  2. आदरणीय वन्दना जी
    नमस्कार !
    वो अपना बनाता भी नहीं
    पास बुलाता भी नहीं
    छः अंगुल की दूरी
    मिटाता भी नहीं
    बस गुजर रही है
    उसके साथ
    उसके बिन
    क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
    .....प्रेम पगे भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  3. भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आप इतना अच्छा लिखती है.. की पढ़कर मैं भी भावों की दुनिया में खो जाता हूँ .... आभार

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  4. पास होकर भी दूर-दूर होते हैं।
    ख्वाब मिलने के हम संजोते हैं।।
    --
    इसी का नाम तो जीवन है!
    --
    सही विश्लेषण,
    सुन्दर रचना!

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  5. तथ्यपूर्ण सुंदर रचना

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  6. तथ्यपूर्ण सुंदर रचना

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  7. उस ऊपर वाले का खेल ऐसा ही है ...वह सभी को यूँही सताता रहता है।

    बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है वन्दना जी। बधाई।

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  8. पास होकर भी दूर-दूर होते हैं।
    ख्वाब मिलने के हम संजोते हैं।।

    बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय करती यह रचना ।

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  9. साथ भी होना, उसके बिना भी होना.. जीवन में अक्सर ऐसी विडम्बना होती है... सुन्दर प्रेम कविता..

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  10. छः अंगुल की दूरी
    मिटाता भी नहीं
    यही छ: अंगुल की दूरी तो नहीं मिटती. लम्बी दूरियाँ तो फिर भी मिट जाती हैं.

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  11. "बस गुजर रही है
    उसके साथ
    उसके बिन"

    "बस गुजर रही है


    उसके साथ

    उसके बिन"

    सहज,स्वाभाविक मार्मिकता पूरी रचना में...कुछ-कुछ ऐसा सा ही लिखना चाहता हूँ मै भी....

    कुंवर जी,

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  12. बस गुज़र रही है --उसके बिन...बेहतरीन अभिव्यक्ति।

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  13. बस गुज़र रही है --उसके साथ, उसके बिन...अच्छा प्रयास.

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  14. जीवन के द्वन्द की पराकाष्ठा।

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  15. भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...ईश्वर है भी और नहीं भी ....

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  16. रिश्तो को समझने के लिए यह कविता पैमाना बन गया है.. सुन्दर कविता..

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  17. गिरधर के लिए मीरा की एक सुन्दर शिकायतपूर्ण अभिव्यक्ति !

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  18. "उसके साथ ... उसके बिन" के विरोधाभास पर बुनी सुन्दर अभिव्यक्ति!
    सादर!

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  19. गहरे भाव के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!

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  20. वो अपना बनाता भी नहीं
    पास बुलाता भी नहीं
    छः अंगुल की दूरी
    मिटाता भी नहीं
    बस गुजर रही है
    उसके साथ
    उसके बिन
    क्या बात है..बहुत खूब....गहरी कशमकश . खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामना

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  21. bhut hi bhavpurn abhivykti .dil ki bat hai dil se hi smjhi ja skti hai . bhut khoob .

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  22. इस कविता के दो dimensions है , एक प्रेम का और दूसरा भक्ति का ... मुझे दोनों ही अच्छे लगे ... बहुत सुद्नर . मुरलीवाले कृष्ण कि कृपा हो आप पर

    विजय

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