Monday, February 21, 2011

क्या होती है माँ

माँ की महिमा अनंत है कितना ही कह लो हमेशा अधूरी ही रहेगी ...........क्या माँ के प्यार को शब्दों में बांधा जा सकता है ? उसके समर्पण का मोल चुकाया जा सकता है ? जैसे ईश्वर को पाना आसान नहीं उसी तरह माँ के प्यार की थाह पाना आसान नहीं क्यूँकि माँ इश्वर का ही तो प्रतिरूप है फिर कैसे थाह पाओगे? कैसे उसका क़र्ज़ चुकाओगे? 

माँ के प्रति सिर्फ फ़र्ज़ निभाए जाते हैं , क़र्ज़ नहीं चुकाए जा सकते . माँ के भावों को समझा जाता है उसके त्याग का मोल नहीं लगाया जा सकता ...........उसको उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर सहेजा जाता है जैसे वो तुम्हें संभालती थी जब तुम कुछ नहीं कर सकते थे ...........जानते हो जैसे एक बच्चा अपनी उपस्थिति का अहसास कराता है .........कभी हँसकर , कभी रोकर , कभी चिल्ला कर , कभी किलकारी मारकर......... उसी तरह उम्र के एक पड़ाव पर माँ भी आ जाती है जब वो अकेले कमरे में गुमसुम पड़ी रहती है और कभी -कभी अपने से बातें करते हुए तो कभी हूँ , हाँ करते हुए तो कभी हिचकी लेते तो कभी खांसते हुए अपने होने का अहसास कराती है और चाहती है उस वक्त तुम रुक कर उससे उसका हाल पूछो , दो शब्द उससे बोलो कुछ पल उसके साथ गुजारो जैसे वो गुजारा करती थी और तुम्हारी किलकारी पर , तुम्हारी आवाज़ पर दौड़ी आया करती थी और तुम्हें गोद में उठाकर पुचकारा करती थी , तुमसे बतियाती थी ........ऐसे ही तुम भी उससे कुछ पल बतियाओ , उसकी सुनो चाहे पहले कितनी ही बार उन बातों को तुम सुन चुके होते हो पर उसे तो याद नहीं रहता  ना तो क्या हुआ एक बार और सही .........उसने भी तो तुम्हारे एक ही शब्द को कितनी बार सुना होगा , जब समझ नहीं आता होगा मगर तब भी उस शब्द में तुम्हारी भाषा समझने की कोशिश करती होगी ना ............वैसे ही क्या तुम नहीं सुन सकते ? क्या कुछ पल का इन छोटे छोटे लम्हों में उसे सुकून नहीं दे सकते ? बताओ क्या तुम ऐसा कर पाओगे ? नहीं , तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगे. तुम्हारे पास वक्त ही कहाँ है ? तुम तो यही उम्मीद करते हो कि इतनी उम्र हो गयी माँ की मगर अक्ल नहीं है कब क्या कहना है .........ज़रा सी बात पर ही  दुत्कार दोगे ...........बहुत मुश्किल है माँ होना और बहुत आसान है बेटा बनना ...............ये तो एक बानगी भर है उसने तो अपनी ज़िन्दगी दी है तुम्हें ...........अपने लहू से सींचा है ..........क्या कभी भी कोई भी बेटा या बेटी इसका मोल चुका सकते हैं ?  क्या कभी भी मातृॠण  से उॠण  हो सकते हैं ? ये तो सिर्फ अपना फ़र्ज़ भी ढंग से निभा लें और माँ को प्यार से दो रोटी दे दें दो मीठे बोल बोल दें और थोडा सा ध्यान दे दें तो ही गनीमत है .............इतना करने में भी ना जाने कितने अहसान उस बूढी काया पर डाल दिए जायेंगे और वो अकेली बैठी दीवारों से बतियाएगी मगर अपना दुःख किसी से ना कह पाएगी आखिर माँ है ना ........कैसे अपने ही बच्चों के खिलाफ बोले ................हर दर्द पी जायेगी और ख़ामोशी से सफ़र तय कर जायेगी ..........जाते जाते भी दुआएँ दे जायेगी .........बस यही होती है माँ ..........जिसके लिए शब्द भी खामोश हो जाएँ .

वक्त की सलीब पर लटकी
एक अधूरी ख्वाहिश है माँ
बच्चे के सुख की चाह में पिघली
एक जलती शमा है माँ
ज़िन्दगी के नक्कारखाने में
बेआवाज़ खामोश पड़ी है माँ
वक्त पर काम आती है  माँ
मगर वैसे बेजरूरत है माँ
घर के आलीशान सामान में
कबाड़ख़ाने का दाग है माँ
सांसों संग ना महकती है माँ
अब तो उम्र भर दहकती है माँ 
जब किसी काम ना आये
तो उम्र भर का बोझ है माँ
वक्त की सलीब पर लटकी
एक अधूरी ख्वाहिश है माँ

31 comments:

  1. यह पोस्ट हर एक को आईना दिखा रही है ...क्या होती है माँ --- एक एक शब्द माँ के दिल से निकला हुआ सा जो स्वयं कभी नहीं यह सब कह सकती ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. .

    एक कमरे में अकेले गुमसुम पड़ी रहती है ...चाहती है कोई आकर बात करे....

    पढ़कर आंसू आ गए । माँ की बराबरी कोई नहीं कर सकता । माँ जो दे देती है , उसका सौवां अंश भी लौटा पाना मुश्किल है ....

    .

    ReplyDelete
  3. Maan ke pairon men jannat hoti hai Vandana Jee.

    Saleem
    9838659380

    ReplyDelete
  4. माँ
    जहां शब्द भी खामोश हो जाते हैं।
    ……………………………

    प्रणाम

    ReplyDelete
  5. कहते हैं परमात्मा भी गुनाहों की सजा जरुर देता है पर एक कोर्ट है जहां हर गुनाह माफ हो जाता है।
    माँ की कोर्ट

    आज की पोस्ट बहुत पसन्द आयी जी
    आपका आभार इस पोस्ट के लिये

    ReplyDelete
  6. Vandana tumne to aankhon se ganga jamuna baha dee!Itna sab karke bhee jab maa dhutkaree jaatee hai to uske dilpe kya guzarti hogi??

    ReplyDelete
  7. माँ पर इस से सार्थक कविता नहीं पढ़ी है इन दिनों.. आपकी रचनात्मक प्रतिभा का प्रतीक है यह कविता...

    ReplyDelete
  8. माँ की महिमा अनंत है कितना ही कह लो हमेशा अधूरी ही रहेगी ..........
    --
    पोस्ट और रचना सहेजनेयोग्य है!

    ReplyDelete

  9. माँ शब्द सुनने से ही मन, ममता से भीग जाता है ! मेरे विचार में ईश्वर को अगर कहीं ढूँढना हो तो माँ में ढूंढना चाहिए वहीँ मिलेंगे करुणानिधान !

    जिन्हें माँ का सुख न मिले उनसे बड़ा बदकिस्मत इस दुनियां में और कोई नहीं !

    और जो माँ को जीते जी कष्ट दें उनसे बड़ा नराधम कोई नहीं !! ऐसे लोग इंसान के शरीर में जन्म अवश्य लिए हैं मगर अन्दर से वे सिर्फ जानवर और सिर्फ जानवर हैं !
    आप बहुत संवेदनशील हैं, शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  10. माँ की समस्या- बेटे के छोटे होने पर
    बेटा रोटी नहीं खाता...
    माँ की समस्या- बेटे के बडे होने पर
    बेटा रोटी नहीं देता...

    ReplyDelete
  11. मां भगवान से भी बडी हे

    ReplyDelete
  12. har kisi ko maa ko samjhna chahiye
    hamare liye maa raato ko jag kar sulati hai
    vo mahan hai
    unka jesa na koi hua hai na hoga
    ...

    ReplyDelete
  13. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    ReplyDelete
  14. MAA KA KARZ KAHI AHI CHUKAYA JA SAKTA
    HARDYASPARSHI POST

    ReplyDelete
  15. वन्दना जी, आप भी क्या किसी प्यारी मम्मा से कम हैं ? बहुत क्यूट पोस्ट। अन्तर सोहिल जी की टिप्पणी बहुत सुन्दर है।

    ReplyDelete
  16. वंदना जी बहुत सुंदर. आप कि इस पोस्ट ने दिल खुश कर दिया

    ReplyDelete
  17. मां.......................................................... एक ऐसा शब्‍द जिसके आगे पूर्ण विराम लग ही नहीं सकता।
    बेहतरीन।
    भावपूर्ण।

    ReplyDelete
  18. क्या होती है माँ ...क्या बता पाना इतना आसान है , मगर हर घर की यह धुरी अपने ही घर में , अपने ही परिवार में अक्सर उपेक्षित रह जाती है !

    भावविभोर कर दिया इस रचना ने !

    ReplyDelete
  19. priya vandana ji

    namskar ,
    man ke samksh har astitwa chhota hai
    aapke srijan men man ko siddat ke sath mahsus karne ka sundar yatn hai.
    aabhar .

    ReplyDelete
  20. priya vandana ji

    namskar ,
    man ke samksh har astitwa chhota hai
    aapke srijan men man ko siddat ke sath mahsus karne ka sundar yatn hai.
    aabhar .

    ReplyDelete
  21. वन्दना जी आपकी पोस्ट भावुक कर गई । माँ की तुलना किसी से नहीँ की जा सकती है । बहुत प्यारी रचना है । आभार जी !

    ReplyDelete
  22. अत्यंत खूबसूरत लेख वंदना जी!

    ReplyDelete
  23. माँ की सुन्दर कविता

    -------------

    मेरे बलोग पर आपका स्वागत है....

    ReplyDelete
  24. माँ की ममता तो बहुत ही निराली होती है....आपकी ये भावमयी रचना पढ़ बहुत ही अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  25. वंदना जी माँ को जो समझ लेता है और उसको आदर देता है,उसके लिए ईश्ववर का द्वार हमेशा खुला रहता है। उसे किसी तीर्थ पर जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सारे तीर्थ तो माँ के चरणों में ही हैं। कबीरदास जी ने सच ही कहा है-
    मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में
    ना मैं मंदिर ना मैं मस्जिद ना काबा कैलास में।
    सुंदर,हृदयस्पर्शी,मार्मिक और भावपूर्ण कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  26. वंदना जी, जो माँ को सम्मान देता है, उसका आदर करता है, उसे किसी तीर्थ स्थान पर जाने की
    आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सारे तीर्थ माँ के चरणों में ही तो हैं। मुझे कबीरदास जी की ये
    पंक्तियाँ याद आ रही हैं--
    मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे मै तो तेरे पास में
    ना मैं मंदिर ना मैं मस्जिद ना काबे कैलास में।
    सच में माँ तो बस माँ ही होती है, माँ की उपमा दुनिया की किसी चीज से नहीं दी जा सकती।
    इतनी सुंदर ,हृदयस्पर्शी,मार्मिक और भावपूर्णरचना के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  27. मां तो मां होती है....
    कविता बहुत ही मार्मिक....

    ReplyDelete
  28. माँ...क्या कहा जाये उसके बारे में..आपकी रचना ने निशब्द कर दिया..आभार

    ReplyDelete
  29. माँ और माँ का दिल बेहद नाज़ुक होता है...माँ प्यार का अथाह सागर है तो एक बूँद प्यार की प्यासी भी है...

    ReplyDelete