Thursday, June 23, 2011

महाकाव्य

ज़िन्दगी के महाकाव्य में
जाने कितने श्लोक बने 

दोहे सोरठे चौपाइयां 
अनगिनत बने
कहीं पूर्ण विराम तो
कहीं अर्धविराम लगे
कहीं कोई जीवन छूट गया
कहीं कोई तारा टूट गया
कहीं स्वप्न छंदबद्ध हुए
कहीं हकीकतें कोष्ठकों में
अवगुंठित हुयीं
कहीं कोई कहानी का
नव निर्माण हुआ
कहीं कोई टुकड़ा कहीं
छूट गया
कभी आसमाँ का रंग
जीवन में उतर गया
कभी रात की स्याही
आँखों में सज गयी
और ज़िन्दगी यूँ ही
कट गयी मगर
आत्मवेदना को ना
शब्द मिले
खोज ना कभी पूर्ण हुई
जो बहता है इक दरिया
उसकी प्यास ना सम्पूर्ण हुई
इस महाकाव्य की आत्मा को ना
आकार मिला
जब तक ना साक्षात्कार हुआ
और महाकाव्य ना
संपूर्ण हुआ
क्यूँकि जीव का ना
ब्रह्म से मिलन हुआ
पूर्ण का पूर्ण से जब मिलन होगा
तब ही पूर्णत्व पूर्ण होगा
और महाकाव्य संपूर्ण होगा

No comments:

Post a Comment