अंतर्यामी प्रभु ने गोपियों का
सच्चा प्रेम लखा
गोपियाँ गौरस बेचने जाती थीं
सो राह में उनको रोक लिया
श्रीदामा सहित पांच हजार
बाल सखाओं संग
वृक्षों की ओट में छिप गए
सोलह श्रृंगार कर जाती
गोपियों का रास्ता रोक लिया
हमारा दान दो तब जाने देंगे
कह गोपियों की राह रोक ली
दंड लेना राजा का धर्म है
और हम तुम कंस की प्रजा हैं
फिर किस अधिकार से तुमने
दंड है माँगा
गोपियों ने मनमोहन से प्रश्न किया
कल तक हमारा गौरस
चुरा -चुराकर खाते थे
आज वन में घेरकर लूटना
अच्छी बात नहीं
बचपन में तुमने हमें
बहुत था खिजाया
आज उसी का दंड
भरने का है समय आया
मैया से शिकायत कर
ऊखल से बंधवाया
आज ना बिना दंड दिए जाने देंगे
छोटे मुँह बड़ी बात ना लगती अच्छी
मोहन जो थोडा बहुत खाना चाहो
तो खाओ पर
दंड ना हम भरेंगी
कंस के पास जा सारा हाल कहेंगी
वो ही तुमको दंड देगा
सुन मोहन बोले
कंस से हम नहीं डरते हैं
सीधी तरह दान दे दो
नहीं दूध दही सब छीन लूँगा
फिर मैया के पास जाओगी
रोकर शिकायत लगाओगी
आज ना ऐसे जाने दूँगा
जो काम ना तुम्हारे बड़ों ने किया
तुम क्यों कलंक लगाते हो
ऐसे कैसे हमारा निर्वाह होगा
कैसे यहाँ हम रह पाएंगी
सुन मोहन बोले
तुम्हारे धमकाने से
ना अब मैं डरूंगा
जो तुम चली जाओगी
इस डर से क्या दंड छोड़ दूँगा
इसी तरह बहुत देर तक
ब्रजबाला मोहना संग झगडती रहीं
पर मन में खूब हुलसती रहीं
ये प्रीत की रीत निराली है
प्रकट में भेद दिखाती है
पर अंतःकरण में
हर भेद मिट जाता है
सिर्फ श्याम रूप ही भाता है
जब गोपियाँ नहीं मानी
कान्हा ने गौरस छीन लिया
ग्वाल- बाल बंदरों में बाँट दिया
बचा- खुचा जमीन पर गिरा दिया
मटकियाँ सारी फोड़ दीं
धक्का -मुक्की में वस्त्र फाड़ डाले
तब गोपियों ने जा
यशोदा को हाल बतलाया
पर यशोदा ने ना विश्वास किया
तुम लोग मेरे मोहन को
पाप दृष्टि से देखती हो
खुद ही वस्त्र फाड़ कर
मुझे उलाहना देती हो
ये सुन ब्रजबालाओं ने
यशोदा को बुरा - भला कहा
क्यों हम पर दोष लगाती हो
दस -पांच गौ ज्यादा होने से
क्या तुम्हारा रुतबा बढ़ गया
हम तुम जाति में बराबर हैं
अगर तुम्हारे पुत्र के
यही लक्षण रहे
तो गाँव छोड़कर चली जाएँगी
क्यों मुझे तुम धमकाती हो
जहाँ मन हो जाकर वहाँ बसों
पर तुम्हारे कारण
बेटे को ना घर से निकालूंगी
ये सुन लज्जित हो
ब्रजबाला घर को गयीं
सारे गाँव में ये बात फैल गयी
ये सुनकर सब ब्रजबालाओं
की इच्छा हुई
हम भी दूध दही बेचने जाएँ
और मनहर प्यारे की श्याम छवि
देख नेत्र जलन शांत करें
दूसरे दिन राधा सहित
सोलह हजार गोपियाँ
गौरस बेचने चलीं
उनकी मनोदशा जान
कान्हा ने राह रोक ली
और अपनी दान लेने की
बात दोहरा दी
आज तुम्हारे यौवन का
दान लेकर रहूँगा
सुन गोपियाँ झगडने लगीं
फिर प्रभु की मनहर छवि में डूब गयीं
जब प्रभु ने उन्हें
अपने प्रति समर्पित पाया
तब अदृश्य रूप धर
सब गोपियों को ह्रदय से लगाया
ह्रदय ज्वाल जब शांत हुई
हर गोपी आनंदित हुई
यौवन दान और कुछ नहीं
तुच्छ वासनाओं को भस्मीभूत करना था
सो प्रभु के स्पर्श ने
आज मन , वचन , कर्म से
उन्हें शुद्ध किया था
देर हुई जान प्रभु ने
उनका दही - दूध का भोग लगाया
पर बर्तनों को उनके
तब भी भरा पूरा पाया
ये आश्चर्य देवता भी देख रहे थे
और ब्रजगोपियों की
सराहना कर रहे थे
मैंने सबका गौरस चखा
पर राधा की दही का स्वाद ना पाया
तब हँसकर राधे ने
अपने हाथों से दही था खिलाया
बाँकी चितवन से तभी
प्रभु ने राधा का मन मोह लिया
अब देर हुई घर जाओ
कह प्रभु ने उन्हें समझाया
पर गोपियों के मन को
ना ये प्रभु से वियोग भाया
हमने तुम्हें कठोर वचन कहे
प्रभु अपराध क्षमा करना
जब गोपियों ने वाक्य कहे
तब प्रभु ने सारे भेद खोल दिए
तुम्हारा प्रेम देख
क्षण भर भी ना विलग रह पाता हूँ
तुम्हारा कठोर वचन सुनने ही तो
मैं वैकुण्ठ छोड़
पृथ्वी पर आता हूँ
अपना मन देकर तुमने
मुझको है पाया
ये सब जानो तुम
बस मेरी है माया
जब अपना चित्त फेर लोगी
तब अलग हो जाऊँगा
मगर तब तक ना तुमसे
मैं भी विलग रह पाऊँगा
इतना कह मोहन वन को गए
मगर गोपियाँ तो अपने
घर ना जा बौरा गयीं
वृक्षों से पूछने लगीं
तुम गौरस मोल लोगे
कभी मोहन का नाम ले
पुकारा करती हैं
गौ रस कहते कहते
अरी कोई मोहन ले लो
श्याम ले लो , कहने लगती हैं
आठों पहर श्याम छवि
ह्रदय और आँखों में
विराजा करती है
घर वाले कितना समझायें
पर प्रीत ना बिसरा करती है
क्रमश: ………
रोचक प्रसंग ....
ReplyDeleteप्रसंग का बहुत प्यारा विवरण..
ReplyDeleteजय राधे जय राधे राधे
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति श्याम रंग में
डूबी आनन्द रस का संचार
कर रही है.
कुछ भी कहने का मन नही,
बस आनन्द सागर में डूबे
रहने के सिवाय.
हार्दिक आभार,वन्दना जी.
शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteथोड़े दिन में महाकाव्य तैयार हो जाएगा यह तो!
कृष्ण लीला कि मनोरम झांकी...
ReplyDeleteरोचक प्रसंग श्रीकृष्ण जन्माश्टमी की बधाई।
ReplyDeleteमन को अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर्व की हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएँ!!
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
"ले लेहु री कोई श्याम सलोना "की प्रेम रस से परिपूरित सारगर्भित अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभोला-कृष्णा