Tuesday, March 16, 2010

तेरे पास

सुन 
तेरे चेहरे पर 
गुलाब सी खिली 
मधुर स्मित 
नज़र आती है मुझे
जब तू दूर -बहुत दूर
निंदिया के आगोश में
स्वप्नों के आरामगाह में
विचरण कर रहा होता है
तेरे सीने के मचलते ज्वार 
यहीं भिगो जाते हैं मुझे 
मेरे तड़पते जज्बातों को 
तेरी बेखुदी में
महकते ख्याल 
तेरे अहसासों की
 लोरियां सुना 
जाते हैं मुझे
तेरी धड़कन की 
हर आवाज़ सुना 
करती हूँ
तेरे हर पैगाम को
पढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं 
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ

34 comments:

  1. kya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .

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  2. kya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .

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  3. भावपूर्ण रचना और अत्यधिक सुन्दर और स्वच्छ शब्दों का प्रयोग... और क्या कहूँ... बढ़िया कविता के लिए धन्यवाद...

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  4. तेरे हर पैगाम को
    पढ़ा करती हूँ
    और मैं यहीं
    तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    समर्पण की भावना जगाती पोस्ट!

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  5. Mere paas to shabdhee nahee...kya kahun?

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  6. वाह बहुत सुन्दर एहसास है इस में बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया

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  7. ऐसी कविता लिखने के बाद शीर्षक में ही लिख दिया करो कि बुढ़ापे की और बढ़ रहे लोग इसे ना पढे। केवल व्‍यस्‍कों के लिए। मजाक कर रही हूँ क्‍योंकि ऐसी बाते जरा पल्‍ले नहीं पड़ती है। लेकिन अभिव्‍यक्ति अच्‍छी है।

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  8. वाह
    क्‍या बात है
    बहुत सुंदर
    इसी लिए तो नारी को महान कहा गया है
    ऐसे भावपूर्ण विचारों की अभिव्‍यक्ति ....
    वाह वाह वाह

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  9. तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ
    बहुत ही सुन्दर भाव लिए....ख़ूबसूरत रचना

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  10. सच में वंदना जी ये भाव तभी आते है जब प्रिय और प्रेमिका में द्वैत का भाव शून्य हो जाता है अर्थात एकीकार हो जाते है,, तब दो चेतनाए समन्वय प्राप्त कर लेती है बहुत बेहतरीन कविता
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  11. बहुत ही सुंदर रचना.

    रामराम.

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  12. तेरे सीने के मचलते ज्वार
    यहीं भिगो जाते हैं मुझे
    मेरे तड़पते जज्बातों को
    ...
    और मैं यहीं
    तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ
    प्रवीण शुक्ल जी ने कह ही दिया है

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  13. बहुत भावपूर्ण रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  14. tujhase door hoote huye bhi terepass hone ka ahasas kar leti hun main.wah,wah vandana ji aapaneto apani is kavita me maano apane saare jajbaato ko nichod kat rakh diya hai.bahut hi umdaa.
    poonam

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  15. बेहतरीन कविता,वंदना जी

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  16. तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ

    भौतिक दूरी मायने नहीं अगर आत्मिक नजदीकी हो तो.
    बहुत सुन्दर

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  17. dil ki gahraiyon se nikli behad khoobsurat abhivyakti.

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  18. लाजवाब प्रस्तुति .........बहुत खूब

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  19. एकाकार होने की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! रचना सुन्दर है वंदना जी !

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  20. बेहतरीन रचना!

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  21. ...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

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  22. "तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ"

    वाह, बहुत सुन्दर भाव लिए हुए .......!

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  23. बहुत भावपूर्ण रचना...

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  24. वन्दना जी
    अंत बहुत अच्छा लगा 1कहां से लाती हैं आप अह्सास का दरिया जो हमारा सब को बहा कर ले जाता है
    सुमन ‘मीत’

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  25. ye kavita to ek maa ke apne bete ke bare me khyaal si bhi lagti hai..
    :) sundar rahi ye bhi

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  26. wah kya likhti hain vandna ji. Mujhe to ye bahut acha laga

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  27. wah kya likhti hain vandna ji aap. hume to ye bahut acha laga.

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  28. bhavana se paripurn aap kee kavitaa hai atee sundar

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  29. अत्यंत भावुक रचना ........

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  30. मैं यहीं
    तुझसे दूर होकर भी
    तेरे पास होती हूँ

    अक्सर प्यार में ऐसा होता है ... खूबसूरत एहसास हैं ,....

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  31. अद्भुत। मन को छूती रचना।

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