Monday, August 23, 2010

उसका पता मिलता नहीं

अपना पता भूलती नहीं 
उसका पता मिलता नहीं 
नगरी नगरी , द्वारे द्वारे 
खोजती फिरूँ प्यारे को 
पर उसका ठिकाना मिलता नहीं 

कमली बन कर डोलूँ 
मन के वृन्दावन में खोजूँ
सांझ सकारे प्रीतम प्यारे 
दर्शन को तरसे नैना हमारे
मैं खोजत खोजत हारी 
मुझे मिले ना कृष्ण मुरारी
मुझे मुझसे मिला जाओ 
इक बार दरस दिखा जाओ
अपना मुझे बना जाओ
प्यारे अपना पता बता जाओ
मुझे मेरा "मैं " भुला जाओ
इक होने का आनंद चखा जाओ
प्रेमानंद में डूबा जाओ
श्याम अपनी श्यामा बना जाओ
ह्रदय की तडपन मिटा जाओ
जन्मो की प्यास बुझा जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ

15 comments:

  1. कमली बन कर डोलूँ
    मन के वृन्दावन में खोजूँ

    वाह क्या कहने
    शानदार रचना ..

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  2. हमेशा की तरह भावपूर्ण बढ़िया रचना . रक्षाबंधन पर्व पर बधाई और शुभकामनाये....

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  3. "मन के वृन्दावन में खोजूँ"

    अच्छे बिम्ब का सुंदर प्रयोग।

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  4. श्याम अपनी श्यामा बना जाओ
    ह्रदय की तडपन मिटा जाओ
    जन्मो की प्यास बुझा जाओ
    सांवरिया इक बार तो आ जाओ
    --
    बहुत ही सुन्दर रचना है!
    --
    इससे भक्ति-भाव की प्रेरणा मिलती है!

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  5. भक्तिरस में डूबी बहुत सुन्दर रचना ....कृष्ण तो छलिया है ...यूँ ही हैरान करता रहेगा :):)

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  6. Phir ek baar tumne" Mai ri,kase kahun...",ye geet yaad dila diya ...bahut sundar likhti ho!

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति।

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  8. रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
    हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें हमारे देश की सभी भाषाओं का समन्वय है।

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  9. अच्छी रचना है,
    श्रावणी पर्व की शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाई

    लांस नायक वेदराम!---(कहानी)

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  10. वाह! शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने!

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  11. समर्पण का उत्कर्ष प्रशंसनीय ।
    वन्दना जी ! आपकी रचनाधर्मिता उत्कृष्ट है ।

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  12. man ke bhaavon ko sundar shabdo me aapane dhaala hai!...ati sundar kruti,badhaai!

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