Tuesday, September 21, 2010

नई सुबह ---------अंतिम भाग

मेरा संपादक हमेशा चाहता था कि मैं दुनिया के सामने आऊं मगर अब कोई इच्छा बाकी नहीं थी इसलिए चाहता था कि अपने लेखन से कुछ ऐसा कर जाऊं ताकि कुछ लोगों का जीवन बदल जाए . 


बस यही मेरी ज़िन्दगी की सारी हकीकत है सर, इतना कहकर माधव चुप हो गया ................


अब आगे ........


अब हर्षमोहन बोले , " चलो , उठो , मेरे साथ चलो. माधव ने पूछा , " कहाँ "? मगर बिना कोई जवाब दिए हर्षमोहन चलते गए और उनके पीछे पीछे माधव को भी जाना पड़ा. 


वो उसे अपने साथ लेकर एक आश्रम में गए और उसे एक कमरे में बैठाकर चले गए. माधव सारे रास्ते पूछता रहा मगर हर्षमोहन खामोश बैठे रहे  सिर्फ इतना बोले ,"आज का दिन तुम कभी नहीं भूलोगे ". 


थोड़ी देर में हर्षमोहन आये और बोले , " माधव , तुम परेशान हो रहे होंगे   कि ये मैं तुम्हें कहाँ ले आया हूँ . देखो ये एक विकलांग बच्चों  का आश्रम है . यहाँ देखो , बच्चों को उनकी विकलांगता का कभी भी अहसास नहीं होने दिया जाता और उन्हें हर तरह से आगे बढ़ने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की जाती है . मुझे यहाँ आकर बड़ा सुकून मिलता है . पता है माधव , मैं खुद को भी एक विकलांग महसूस करता हूँ . आज मेरे पास धन- दौलत ,प्रसिद्धि सब kuch है . देखने में हर इन्सान यही कहेगा कि इसे क्या कमी हो सकती है मगर देखो मेरी धन -दौलत सब एक जगह  आकर हार गयी और मैं कुछ ना कर सका . चाहे सारी दुनिया की खुशियाँ भी समेट कर अगर एक पलड़े में रख दी जायें तो भी चेहरे की सिर्फ एक मुस्कान के आगे वो सब फीके हैं. अब बताओ , मुझसे ज्यादा विकलांग कौन होगा जो सब कुछ होते हुए भी अपंगों की ज़िन्दगी जीने को बेबस हो गया हो " . 


माधव को कुछ समझ नहीं आ रहा था . वो तो सिर्फ उनकी सुने जा रहा था और इस असमंजस में था कि इतना सब कुछ होते हुए भी उनके दिल की ऐसी कौन सी फाँस है जिसने उन्हें या कहो उनकी सोच को विकलांग बना रखा है और वो खुद को असहाय  महसूस कर रहे हैं. फिर उसने  पूछा , " ऐसी कौन सी कमी है जो आप अपने को विकलांग महसूस करते हैं ".
तब उन्होंने कहा कि माधव  , आज  अपनी विकलांगता से मिलवाता हूँ और वो उसे एक कमरे में लेकर गए वहाँ माधव ने देखा कि एक लड़की छोटे- छोटे विकलांग बच्चों की बड़ी तन्मयता से सेवा करने में लगी है मगर पीठ होने की वजह से वो उसे देख नहीं पा रहा था  मगर हर्षमोहन ने जैसे ही पुकारा ," बिट्टो देखो तो आज मैं क्या लेकर आया हूँ. तुम्हारी सारी ज़िन्दगी की तपस्या का फल आज मैं अपने साथ लाया हूँ. जो तुम स्वप्न में भी नही सोच सकती थीं आज वो हो गया .बस एक बार ज़रा नज़र तो घुमा कर देखो और फिर माधव से बोले ,"ये लो मिलो मेरी विकलांगता से जिसके प्यार ने मुझे पंगु बना दिया . जिसके चेहरे की एक मुस्कान के लिए मैं पिछले कितने सालों से एक पल में कितनी मौत मर- मर  कर जीता रहा हूँ ".

और जैसे ही लड़की मुड़ी और माधव की तरफ देखा तो  माधव की आँखें फटी की फटी रह गयीं . उसके सामने शैफाली खडी थी और शैफाली  , वो तो जैसे पत्थर की मूरत सी खडी रह गयी. कुछ बोल ही नहीं पाई. ऐसी अप्रत्याशित घटना थी जिसके बारे में उन तीनो में से किसी ने नहीं सोचा  था. तीनो को ही आज संसार की सबसे बड़ी दौलत मिल गयी थी. तीनो को ही उनकी चाहत मिल गयी थी क्योंकि शैफाली ने ज़िन्दगी भर शादी किये बिना विकलांग बच्चों की सेवा करने की ठान ली थी और पिता का घर छोड़कर उसी आश्रम में रहने आ गयी थी और हर्षमोहन के लिए तो ये बात मरने  से भी बदतर थी मगर शैफाली के आगे उनकी एक नहीं चली थी और मजबूरन उन्हें उसकी इच्छा के आगे अपना सिर झुकाना पड़ा था मगर वो ऐसे जी रहे थे जैस किसी ने शरीर से आत्मा निकाल ली हो और आज का दिन तो जैसे तीनो की जिंदगियों में एक नयी सुबह का पैगाम लेकर आया था जिसमे तीनो की ज़िन्दगी में एक नयी उर्जा और रौशनी का संचार कर दिया था . 


समाप्त 

12 comments:

  1. आज का दिन तो जैसे तीनो की जिंदगियों में एक नयी सुबह का पैगाम लेकर आया था जिसमे तीनो की ज़िन्दगी में एक नयी उर्जा और रौशनी का संचार कर दिया था .
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    नई सुबह का अन्त सुखान्त देखकर बहुत अच्छा लगा!

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  2. आशाओं का अन्त पाती कहानी।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    काव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

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  4. पूरी कहानी पाठक को अंत तक बाँध कर रखती है ...अंत भला तो सब भला ....बहुत अच्छी लगी कहानी ..

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  5. वन्दना कहानी का अन्त बहुत अच्छा लगा आखिर माधव और शेफाली को उनका प्यार मिल ही गया। बहुत अच्छी है कहानी बधाई।

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  6. शुरू से लेकर अंत तक बहुत अच्छी लगी कहानी! आखिर दो प्यार करने वालों की मिलन हुई और इसी तरह से कहानी का अंत दिलचस्प रहा!

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  7. मुझे इसी तरह के सुखान्त वाली कहानियाँ पसंद आती है..कहानी पूरे वक्त अपने प्रवाह में बांधी रही.

    एक सफल कहानी के लिए हार्दिक बधाई.

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  8. आज इस बेहतरीन कहानी की ७वीं, ८वीं और ९वीं तीनों किश्तें पढीं.. अंत तक पहुँचते-२ आँखों ने मुट्ठी भर आँसू ले के बाहर ठेल दिए.. खुशी के आँसू.. बहुत ही बढ़िया अंत के साथ ये बड़ी कहानी दिल को भायी

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  9. ओहो ..ऐसा अंत तो सोचा ही नहीं था...बहुत ही सुन्दर समापन...दोनों को मिलाकर हम पाठकों का दिल खुश कर दिया.
    बहुत ही बढ़िया रही कहानी...अंत तक बाँध कर रखा

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  10. बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......

    (क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

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  11. एक सुन्दर प्रेम कहानी का अद्भुत ताना बाना, मै पढते हुये शेफाली को कही भूल सा गया था, मुझे लगा वह एक ऐसी पात्र के रूप मे उपयोग की गयी होगी जो आयी और गयी सी होगी लेकिन वही इस कथानक का अद्भुत चरित्र बनकर उभरेगा मैने इसकी कल्पना तक नही की थी. सुन्दर कहानी, दिल को छू गयी.

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  12. शुरू में कहानी में पढ़े लिखे नायक को भिखारी का रूप देना कुछ जम सा नहीं रहा था , मगर कहानी बीच से ही बांधती चली गई , और रोमांचक अंत भी अच्छा लगा ।

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