Saturday, November 13, 2010

ख़ामोशी की डगर और उम्मीद की किरण--------भाग १

क्या सबके साथ ही ऐसा होता है ? जब धडकनों के स्पंदन चुगली करने लगते हों , आँखें हर पल बेचैन सी कुछ खोजती हों, लबों पर आकर  हर बात दम तोड़ देती हो और नींद तो जैसे जन्मों की दुश्मनी निकालती हो................दिन के हर पल में सिर्फ एक ही मूरत का दीदार होता हो...........तो क्या कहते हैं इसे.............कैसे ख़त्म होगी ये बेचैनी? मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है ? अब किसी से कहूँगा तो मुझे बीमार समझेंगे या मेरी हँसी उड़ायेंगे ? अब क्या करूँ? ऐसा सोचते -सोचते रोहित बेचैन हो गया . 

जब से वो पूजा से मिला था तब से ही उसका ये हाल था . यूँ तो पूजा को वो पिछले ४-५ महीने से मिल रहा था क्योंकि पूजा उसके घर के पास ही रहने आई थी तो दीदार तो  रोज हो ही जाता था मगर पिछले कुछ समय से उसकी पूजा से बातचीत भी शुरू हो गयी थी और जितना उसने पूजा को जाना उतना ही पूजा का व्यक्तित्व उस पर हावी होता गया. वो खुद को पूजा के आकर्षण में घिरा पा रहा था और जितनी निकलने  की कोशिश करता उतना ही उस चक्रव्यूह में फंसता जा रहा था और अब उसे भी लगने लगा था कि ये सब गलत है मगर दिल था कि मानता ही नहीं था . बार- बार उसे खींच कर उसी ओर ले जाता था और आँखें खुद को रोक ही नहीं पाती थीं उसे निहारने से ..........ना जाने कैसे वो पूजा के मोहपाश में बंधता जा रहा था............

क्रमशः  ...............




6 comments:

  1. पढनी शुरू की और क्रमश: आ गया...उत्सुकता हो रही है आगे की कहानी की ..

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  2. अगली कड़ी का इंतज़ार है।

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  3. आगे ना जाने क्या होगा... मेरा ह्रदय भी धड़क रहा है...

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  4. धारावाहिक अच्छा लग रहा है! अगली कड़ी का इन्तजार है!
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    बाल दिवस की शुभकामनाएँ!

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  5. अगली कड़ी का इन्तजार है!

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