कभी दूर होकर भी पास होता है
कभी पास होकर भी दूर होता है
सांवरे ये प्रेम के कैसे भंवर पड़े हैं
जिसमे ना डूबती हूँ ना तरती हूँ
तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ
आस की हर डोर तोड़ चुकी हूँ
तेरा ही गुणगान किया करती हूँ
तेरे दरस को ही तरसती हूँ
सांवरे तुझ बिन हर पल तड़पती हूँ
कभी दरस दिखाना कभी छुप जाना
कभी अपना बनाना कभी बेगाना
तेरी आँख मिचोनी से भटकती हूँ
प्रेम की पीर ना सह पाती हूँ
दिन रात बस राधे राधे रटती हूँ
फिर भी ना तेरी कृपा बरसती है
सांवरे तेरे प्रेम में ऐसे तड़पती हूँ
जैसे सागर में मीन प्यासी
विरह वेदना ना सह पाती हूँ
तुझसे दूर ना रह पाती हूँ
Tuesday, November 9, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत तराशी हुई रचना है, आनंद आगया.
ReplyDeleteक्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
ReplyDeleteतेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ
ReplyDeleteआस की हर डोर तोड़ चुकी हूँ
तेरा ही गुणगान किया करती हूँ
तेरे दरस को ही तरसती हूँ
.....Sundar prem manuhaar karti rachna...
प्रेम में निकटा की विमा एक नया आकार ले लेती है।
ReplyDeleteकभी दूर होकर भी पास होता है
ReplyDeleteकभी पास होकर भी दूर होता है
सांवरे ये प्रेम के कैसे भंवर पड़े हैं
जिसमे ना डूबती हूँ ना तरती हूँ
तेरे प्रेम की डोर से ही खींचती हूँ..
---
कृष्ण की भक्ति से सराबोर रचना पढ़कर हम भी इस सागर में गोते लगाकर तृप्त हो गये!
विरह वेदना ना सह पाती हूँ
ReplyDeleteतुझसे दूर ना रह पाती हूँ
विरह की वेदना...में डूबी हुई मार्मिक रचना
रागात्मक भावों का सुंदर अंकन।
ReplyDelete---------
ब्लॉगर पंच बताएं, विजेता किसे बनाएं।
क्या बात है.. बहुत खूब.
ReplyDeleteदिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
विरह वेदना को दर्शाती हुई सुंदर रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूब .
ReplyDeleteप्रेम की पीर वही जानता है जिसने किसी से प्रेम किया हो.हृदय के भावों को उकेरती सुंदर रचना.
ReplyDeleteडॉ.मीना अग्रवाल
विरह वेदना न सह पाती हूँ
ReplyDeleteतुझसे न दूर रह पाती हूँ
अच्छी रचना !