Tuesday, July 26, 2011

कृष्ण लीला ………भाग 4

जब प्रथम पुत्र उत्पन्न हुआ
वासुदेव ने लाकर कंस को दिया
शिशु को देख कंस का दिल पसीज गया
ये बालक है मेरा क्या बिगाड़ेगा
मुझे डर तो आठवें से है
ये तो पहला है ,सोच छोड़ दिया
पर कान के कच्चे पर
कोई कैसे करे विश्वास
हरि इच्छा से नारद जी
पहुंचे कंस के पास
एक फूल के माध्यम से
सारा सच समझा दिया
और हर पंखुड़ी को फूल की
आठवां गिना दिया
इतना सुन कंस ने
बालक को बुलवा लिया
और पत्थर पर पटक
बालक का प्राणांत किया
वासुदेव देवकी को
कारागार में डाल दिया

उनके छहों पुत्रों को
इसी तरह मार दिया 
सातवें पुत्र के रूप में
शेषनाग का अवतार थे
जो भगवान के प्रिय भक्त थे
भक्त का अहित भगवान
होने देते नहीं
उसके लिए सृष्टि के
नियम ताक पर रख देते हैं
 सातवाँ गर्भ वासुदेव की
दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में
स्थानांतरित किया
और सारे में ये फ़ैल गया
देवकी के गर्भपात हुआ
इतना सुन कंस खुश हुआ
सोचा मेरे डर से बालक
ने ना जन्म लिया
अब वैकुंठनाथ
जगत मंगल के लिए
गर्भ में आ गए
सब मंगल जग में छा गए
मुख कान्ति देवकी की
चमकने लगी
जिसे देख कंस की नींद
उड़ने लगी
मन ही मन कंस
डरने लगा
हर ओर सोते जागते
कृष्ण का चिंतन करने लगा
हर तरफ उसे 

बाल गोपाल दिखने लगा
वैर से ही सही वो
भगवान का स्मरण करने लगा
कंस ने पहरे कठिन बैठा दिए
सात ताले कोठरियों में लगवा दिए
भगवद जन्म  के समय
देवता सारे आ गए
अदृश्य रूप से स्तुति
प्रभु की करने लगे
प्रभु को पृथ्वी का
भार हरण करने के लिए
जल्द जन्म लेने को कहने लगे
जब से वैकुंठनाथ गर्भ में आये
परमानन्द छाने लगा था
बिन ऋतुओं के भी 

वृक्षों पर फल फूल आने लगे
ग्रह , नक्षत्र , तारे
सौम्य शांत होने लगे
दिशायें स्वच्छ प्रसन्न होने लगीं
तारे आकाश में जगमगाने लगे
घर घर मंत्राचार होने लगे
हवानाग्नी स्वयं प्रज्ज्वलित
 होने लगी
मुनियों के चित्त प्रसन्न होने लगे
रात्रि में सरोवरों में
कमल खिलने लगे
शीतल मंद सुगंध वायु बहने लगी
देवता दुन्दुभी बजाने लगे
गन्धर्व ,किन्नर मधुर स्वर से गाने लगे
अप्सराएं नृत्य करने लगीं
जल भरे मेघ वृष्टि करने लगे
चारों तरफ प्रकृति में
हर्षोल्लास मनने लगे
भाद्रपद का महीना
अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र
अर्ध रात्रि में जग नियंता
जगदीश्वर प्रभु ने
स्वयं को प्रगट किया
अंधियारी कुटिया में
उजियारा हो गया
वासुदेव देवकी कर जोड़
प्रभु की स्तुति करने लगे
स्तुति में अपनी व्यथा कहने लगे
तब प्रभु ने समझाया
जैसा मैं कहूँ
अब तुम वैसा ही करना
मुझे तुम नंदगाँव में
नंदबाबा के घर छोड़ आना
वहाँ मेरी माया ने जन्म लिया होगा
उसे यहाँ उठा लाना
मेरे भक्तों ने बहुत दुःख पाया है
अब कंस का अंत निकट आया है
ताले सारे खुल जायेंगे
रास्ते सारे तुम्हें मिल जायेंगे
जैसे पहला कदम उठाओगे
सब पहरेदार सो जायेंगे
किसी को कुछ भी
पता ना चलेगा
और अपना स्वरुप
पूर्ववत तुम  पा जाओगे

16 comments:

  1. Vandana,tumharee is maalikaa se bahut-si aisee baaten pata chal rahee hain,jinkee kabhee khabar hee nahee thee! Bahut sundar likhtee ho....aur koyee shabd nahee mere paas!

    ReplyDelete
  2. भावप्रद, प्रभावोत्पादक!!

    ReplyDelete
  3. कृष्णमय भक्ति ...बहुत खूब
    वंदना जी ....कभी कभी लीक से हट कर पढना बहुत अच्छा लगता है
    आभार

    ReplyDelete
  4. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत शांति मिलती है .......राधे कृष्ण

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति ..

    छठे पुत्र के रूप में
    शेषनाग का अवतार थे
    जो भगवान के प्रिय भक्त थे
    भक्त का अहित भगवान
    होने देते नहीं
    उसके लिए सृष्टि के
    नियम ताक पर रख देते हैं

    छठे पुत्र का क्या हुआ ..यह स्पष्ट नहीं हुआ ...कृपया बताएँ

    ReplyDelete
  6. @ संगीता दी
    माफ़ी चाहती हूँ थोडी सी लिखने मे गलती हो गयी थी छठे की जगह सातवाँ लिखना था उसे सही कर दिया है…………धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. शुक्रिया ..तभी न गिनती में गडबड हो रही थी :):)

    ReplyDelete
  8. सुन्दर,रोचक ,धाराप्रवाह काव्यमय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार वंदना जी.
    आपकी लेखनी को प्रणाम.
    आपके सुन्दर प्रयास को प्रणाम.

    ReplyDelete
  9. Bahut hi sundar parstuti........,
    agle bhag ka intjar rahega.........
    Jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  10. Bahut hi sundar parstuti........,
    agle bhag ka intjar rahega.........
    Jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुन्दर विवरण, कृष्णजन्म का।

    ReplyDelete
  12. aaj chaaron bhaag padh liye hain bahut kuchh naya janNe ko mila. aabhar. aage ki kadi ka intzar hai.

    ReplyDelete
  13. प्रभु की लीला ही है...कि पहले पाप का घड़ा भरते हैं...नारद उन्हीं के आदेशानुसार आये होंगे...

    ReplyDelete
  14. आपका प्रयास बहुत अच्छा है।

    ReplyDelete
  15. भक्ति से परिपूर्ण प्रस्तुती! बहुत बढ़िया लगा!

    ReplyDelete