Thursday, January 26, 2012

कृष्ण लीला .........भाग 35


जब कंस ने वत्सासुर का वध सुना
तब उसके भाई बकासुर को भेज दिया
बगुले का रूप रखकर वो आया है
जलाशय के सामने उसने डेरा लगाया है
पर्वत समान रूप बना 
घात लगाकर बैठा है 
कब आयेंगे कृष्ण 
इसी चिंतन में ध्यानमग्न बैठा है
मोहन प्यारे ने उसे पहचान लिया है
ग्वालबाल देखकर डर रहे हैं
तब मोहन प्यारे बोल पड़े हैं
तुम भय मत करना
हम इसको मारेंगे
इतना कह श्यामसुंदर उसके निकट गए
जैसे ही उसने मोहन को देखा है
वैसे ही उन्हें पकड़ निगल लिया है
और प्रसन्न हुआ है
मैंने अपने भाई के वध का बदला लिया है
इधर ग्वाल बाल घबरा गए 
रोते -रोते मैया को बताने चले
थोड़ी दूर पर बलराम जी मिल गए
सारा वृतांत उन्हें सुनाया है
धैर्य धरो शांत रहो 
अभी कान्हा आता होगा
तुम ना कोई भय करो
कह बलराम जी ने शांत किया है
जब कान्हा ने जाना
सब ग्वालबाल व्याकुल हुए हैं
तब अपने अंग में ज्वाला उत्पन्न की है
जिससे उसका पेट जलने लगा
और उसने घबरा कर 
श्यामसुंदर को उलट दिया
तब नन्दलाल जी ने उसकी 
चोंच पर पैर रख 
ऊपर की ओर उसे चीर दिया 
ये देख ग्वालबाल आनंदित हुए 
देवताओं ने भी दुन्दुभी बजायी है 
ग्वालबालों ने मोहन को घेर लिया
और बृज में जाकर सब हाल कह दिया
जिसे सुन सभी हैरत में पड़ गए
पर नंदबाबा ने मोहन के हाथों
खूब दान करवाया है 
आज मेरा पुत्र मौत के मुँह से
बचकर आया है
सब मोहन को निहारा करते हैं
खूब उनकी बलैयां लेते हैं
जब से ये पैदा हुआ 
तब से ना जाने कितनी बार
मौत को इसने हराया है
हे प्रभु हमारे मोहन की 
तुम रक्षा करना
कह - कह ब्रजवासी दुआएँ करते हैं
ये देख मैया बोली
लाला तुम ना बछड़े 
चराने जाया करो 
तब मोहन बातें बनाने लगे
मैया को बहलाने लगे
हमको ग्वाल बाल अकेला छोड़ देते हैं
अब मेरी बला भी 
बछड़ा चराने ना जावेगी
बस तुम मुझको 
चकई भंवरा मंगा देना
तब मैं गाँव में ही खेला करूंगा
इतना सुन यशोदा ने
चकई भंवरा मंगाया है
अब मोहन ग्वालबालों के संग
ब्रज में चकई भंवरा खेला करते हैं
जिसे देखने गोपियाँ आया करती हैं
नैनन के लोभ का ना संवरण कर पाती हैं
प्रीत को अपनी ऐसे बढाती हैं
जब कोई बृजबाला उनके
निकट खडी हो जाती है
तब उनकी प्रीत देख
मोहन हँसकर चकई ऐसे उड़ाते हैं
वो गोपी के गहनों में फँस जाती है
जिसे देखकर वो गोपी 
अंतःकरण में प्रसन्न हो 
प्रगट में गलियाँ देती है 
मोहन ऐसी मोहिनी लीलाएं
नित्य किया करते हैं
जिसके स्वप्न में भी दर्शन दुर्लभ हैं
वो मोहन गोप गोपियों संग
ब्रज में खेला करते हैं
बड़े पुण्य बडभागी वो नर नारी हैं 
जिन्होंने मोहन संग प्रीत लगायी है 
फिर भी न हम जान पाते हैं
उन्हें न पहचान पाते हैं 
वो तो आने को आतुर हैं
मगर हम ही ना उन्हें बुला पाते हैं 
ना यशोदा ना गोपी बन पाते हैं ...

क्रमशः ...........

14 comments:

  1. क्रम से क्रमशः पढ़ रहे हैं!
    राधे कृष्ण!

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  2. मगर हम ही ना उन्हे बुला पाते हैं
    ना यशोदा ना गोपी बन पाते हैं

    आनंदमयी प्रस्तुति...

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  3. एक के बाद, दूसरा आया,
    कान्हा से बतियाने को..

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  4. कृष्ण मय कविता... बहुत बढ़िया...

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  5. बहुत मनमोहक प्रस्तुति...जय राधे कृष्ण

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  6. कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !

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  7. बहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद।

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  8. बहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद।

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  9. लीलाओं का गतिमान चक्र - सुन्दर

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  10. अद्भुत लीलाओं का वर्णन पढ़ने को मिल रहा है ..सुन्दर प्रस्तुति

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  11. सुन्दर कृष्ण चरित्र

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  12. ये चकई भंवरा क्या होता है वंदनाजी ?
    आपने भी खेला होगा इसे ?

    आपकी कृष्ण लीला बहुत ही सुन्दर प्रकार से विस्तार पा रही है.
    अब तो शब्द भी नहीं मिल पाते कुछ कहने के लिए.
    हम धन्य हैं जो आपकी रसमयी लेखनी का आस्वादन करने को
    हमें मिल रहा है.

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