इक दिन मोहन
मन -मोहिनी रूप बनाये
यमुना किनारे खेलने गए
किरीट कुंडल पहने
उपरना ओढ़े
लकड़ियाँ हाथ में लिए
पीताम्बर डाले सखा के
कंधे पर हाथ धरे खड़े थे
उसी समय बृषभानु दुलारी
राधिका प्यारी अति सुंदरी
सात आठ वर्ष की अवस्था वाली
यमुना स्नान को आई थीं
इक दूजे से नैना चार हुए
प्रीति पुरानी उमड़ पड़ी
दोनों की प्रीत जग पड़ी
हँसकर पूछा मोहन ने
ए सुंदरी गोरी- गोरी
ज़रा अपना नाम बताओ
कौन देस में रहती हो
कहाँ तुम्हारा धाम है
कौन सा तुम्हारा गाम है
ज़रा हमें भी बतलाओ
आज तक तुम्हें नहीं देखा है
प्रीती भरी वाणी ने
राधा का मन मोह लिया
बृषभानु लली हूँ
राधिका नाम है
घर में सखियों संग खेला करती हूँ
बाहर नहीं निकलती हूँ
इस कारण नहीं देखा है
पर मैंने सुना है
नन्द जी का बेटा
माखन चुरा कर खाता है
गोपियों को बहुत खिजाता है
क्या तुम वो ही नंदकुमार हो ?
सुन मोहन बोल उठे
तुम्हारा मैंने क्या चुराया है
बस तुम मेरे मन को भायी हो
सो घडी दो घडी आकर खेला करना
और नहीं कुछ चाहत है
इतना सुन राधा जी सकुचा गयीं
और मन में मोहन की प्रीत रख
बरसाने आ गयीं
संध्या समय दूध दोहने का बहाना बना
मोहन से मिलने आ गयीं
क्योंकि मन मोहन में लग गया था
मोहिनी मूरत में अटक गया था
प्रीत पुरानी जग गयी थी
जब दोनों की भेंट हुई थी
श्यामसुंदर की माया से
बदली छा गयी थी
दोनों ने प्रेमपूर्वक बात की
और जब देर हुई जाना
तब राधा जी घबरा गयीं
तब जल्दी में मोहन ने उनकी सारी ओढ़ ली
और अपनी पीताम्बरी उन्हें दी
इधर मोहन सारी ओढ़े घर पर आये हैं
जिसे देख यशोदा विचार करती हैं
जरूर किसी गोपी से प्रीत कर
उसकी सारी ले ली है
अंतर्यामी मैया के मन की जान गए
और मैया से बोल उठे
मैया आज यमुना किनारे
जब गौओं को पानी पिलाता था
एक गोपी स्नान के लिए
सारी रख यमुना में उतर गईं
जैसे ही एक गौ भागी
मैं उस गौ के पीछे भगा
गोपी ने डर के मारे
मेरी पीताम्बरी ओढ़ लिया
और अपनी सारी छोड़ गयी
मैं उस ब्रजबाला को जानता हूँ
अभी उससे पीताम्बर लेकर आता हूँ
इतना कह घर से बाहर
जाकर मोहन ने माया से
सारी को पीताम्बर बनाया
और अपने झूठ को
और मैया की निगाह में सच बनाया
इधर राधा प्यारी घबरायी सी
पीताम्बर ओढ़े अपने घर गयी
उसकी हालात देख उनकी मैया बोल पड़ी
बेटी तेरी ये दशा कैसे हुई
घर से तो भली चंगी थी गयी
तब राधा जी ने बात बनाई
इक गोपी मेरे साथ थी जिसे
सांप ने काटा था
तब नंदलाल के झाडे से
उसने होश संभाला था
उसी का हाल देख मैं
मैया डर गयी
और गलती से उसकी चूनर ओढ़ ली
मैया बिटिया को बारम्बार गले लगाती है
और समझाती हैं
तुम बाहर दूर खेलने मत जाना
अब मैं घर और गाँव में खेलूंगी
मैया तुम ना चिंता करना
कह राधाने आश्वासन दिया
क्रमशः ...........
मनभावन झांकी उतार दी मन में ...
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर ..
kalamdaan.blogspot.in
प्रिय वंदना जी आपकी रचना मुझे बहुत पसंद आया.... सबसे पहले मैं आपको बताना चाहता हूँ की मेरा भी जन्म कृष्ण पक्छ (अस्ठ्मी) के दिन
ReplyDeleteहुआ था | मनभावन रचना | कृष्ण की लीला को अच्छे भाव में प्रस्तुत कियें हैं |
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लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
ReplyDeleteराधा कान्हा के प्रीत का मनभावन वर्णन...बहुत बहुत सुंदर!
ReplyDeletebahut achchi prastuti vandna jee.
ReplyDeleteप्रेम रंग में उमड़ता दृश्य - सुभग सलोना
ReplyDeleteमन भावन चित्रण किया है राधा माधव के दर्शन हो गए
ReplyDeleteराधे राधे..
ReplyDeleteमन तो चुरा लिया , शेष रह ही क्या गया है कान्हा , बहुत सुंदर वंदनाजी
ReplyDeleteसबसे ज्यादा झूठ प्रेम में पड़े लोग ही बोलते हैं। नहीं?
ReplyDeleteहे राम!
ReplyDeleteमेरा कमेन्ट कहाँ गया.
यहाँ तो सब चोरा चारी हो रही है.
मन चुरा रहा है नन्द का लाला
अब पडा है उसका राधा जी से पाला.
तू डाल डाल मैं पात पात.
वंदना जी,क्या सच में झूठ बोलने में
राधा जी कृष्ण से भी बढ़ कर हैं?
राकेश जी यही तो प्रेम की उच्चता है ……प्रेम मे तो वैसे भी सब जायज है और उसमे राधा जी भी यदि करती हैं तो क्या बुरा है क्योंकि इस प्रेम के आगे तो सब निर्रथक है।:)
ReplyDeleteहमने तो सुना है वंदना जी
ReplyDeleteप्रेम न बाड़ी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचे,शीश देई ले जाए
आपके समक्ष नतमस्तक हैं जी.
होली की आपको और सभी जन को बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
यूँ ही राधा कृष्ण लीला रस में डूब कर सभी को डुबोती रहिएगा आप.