आठवें वर्ष में कन्हैया ने
शुभ मुहूर्त में दान दक्षिणा कर
वन में गौ चराने जाना शुरू किया
मैया ने कान्हा को
बलराम जी और गोपों के
सुपुर्द किया
वन की छटा बड़ी निराली थी
सुन्दर पक्षी चहचहाते थे
हिरन कुलाचें भरते थे
शीतल मंद सुगंध
समीर बहती थी
वृक्ष फल फूलों से लदे खड़े थे
आज मनमोहन को देख
सभी प्रफुल्लित हुए थे
वहाँ कान्हा नई- नई
लीलाएं करते थे
गौ चरने छोड़ देते
और खुद ग्वालों के संग
विविध क्रीडा करते थे
कभी मुरली की मधुर तान छेड़ देते थे
जिसे सुन पशु - पक्षी स्तब्ध रह जाते थे
यमुना का जल स्थिर हो जाता था
कभी मधुर स्वर में संगीत अलापा करते थे
कभी पक्षियों की बोलियाँ निकाला करते थे
कभी मेघ सम गंभीर वाणी से
गौओं को नाम ले पुकारा करते थे
कभी ठुमक- ठुमक कर नाचा करते थे
और मयूर के नृत्य को भी
उपहासास्पद बनाया करते थे
कभी खेलते खेलते थक कर
किसी गोप की गोद में
सो जाया करते थे
कभी ताल ठोंककर
एक दूजे से कुश्ती लड़ते थे
कभी ग्वाल बालों की
कुश्ती कराया करते थे
और दोनों भाई मिल
वाह- वाही दिया करते थे
जो सर्वशक्तिमान सच्चिदानंद
सर्वव्यापक था
वो ग्रामीणों संग ग्रामीण बन खेला करता था
जिसका पार योगी भी
ध्यान में ना पाते थे
वो आज गोपों के संग
बालसुलभ लीलाएं करते थे
फिर किसमे सामर्थ्य है जो
उनकी लीला महिमा का वर्णन करे
इक दिन गौ चराते दोनों भाई
अलग- अलग वन में गए
तब श्रीदामा बलराम से बोल उठा
भाई यहाँ से थोड़ी दूर
इक ताड़ का वन है
जिसमे बहुत मीठे फल लगा करते हैं
वहाँ भांति- भांति के वृक्ष लगे खड़े हैं
पर वहाँ तक हम पहुँच नहीं पाते हैं
धेनुक नामक दैत्य गर्दभ रूप में
वहाँ निवास करता है
जो किसी को भी उसके
मीठे फल ना खाने देता है
ये सुन बलराम जी वहाँ पहुँच गए
और एक वृक्ष को हिला
सारे फल गिरा दिए
जैसे ही फल गिरने की आवाज़ सुनी
दैत्य दौड़ा आया और
बलराम जी पर वार किया
बलराम जी ने उसकी
टांग पकड़ पटक दिया
बलराम जी को दुलत्तियाँ मारने लगा
तब बलराम जी ने उसे वृक्ष पर
मार उसका प्राणांत किया
ये देख उसके दूसरे साथी दौड़े आये
पर बलराम जी के आगे
कोई ना टिक पाए
ये देख देवताओं ने
पुष्प बरसाए
जब मोहन बलराम और ग्वालों संग
गोधुली वेला में वापस आते हैं
ये मधुर वेश कान्हा के
हर दिल को भाते हैं
संध्या समय ब्रज में प्रवेश करते हैं
घुंघराली अलकों पर धूल पड़ी होती है
सिर पर मोर पंख का
मुकुट शोभा देता है
बालों में सुन्दर सुन्दर
जंगली पुष्प लगे हैं
जो मोहन की सुन्दरता से
शोभित होते हैं
मधुर नेत्रों की चितवन
मुख पर मुस्कान ओढ़े
अधरों पर बंसी सुशोभित होती
मंद मंद गति से
मुरली बजाते जब
श्याम ब्रज में प्रवेश करते हैं
तब दिन भर विरह अगन से
तप्त गोपियों के ह्रदयो को
मधुर मतवारी चितवन से
तृप्त करते हैं
गोपियाँ अपने नेत्र रुपी
भ्रमरों से
प्रभु के मुखारविंद के
मकरंद रस का पान कर
जीवन सफल बनाती हैं
और प्रभु के ध्यान में
चित्र लिखी सी खडी रह जाती हैं
यशोदा रोहिणी तेल उबटन लगा
उन्हें स्नान करती हैं
फिर भांति भांति के भोज करा
सुन्दर शैया पर सुलाती हैं
इसी प्रकार कान्हा
रोज दिव्य लीलाएं करते हैं
ग्वाल बाल गोपियों और ब्रजवासियों को
जो वैकुण्ठ में भी सुलभ नहीं
वो सुख देते हैं
क्रमशः .........
भगवान श्री कृष्ण की दैनिक दिन चर्या पढ़ कर दिल को अपार खुशी हुई।
ReplyDeleteप्रभु सबको सदबुद्धि और अपनी भक्ति दे। धन्यवाद
कृष्ण में सराबोर आपकी सोच , आपकी कलम .... आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व
ReplyDeleteWah! Aur kya kahun?
ReplyDeleteसार्थक सृजन किया है आपने!
ReplyDeleteऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है..
ReplyDeleteकुछ दिनों से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ ,कंप्यूटर खराब हो गया है ..
ReplyDelete..बेहतरीन भाव..
जय श्री कृष्ण
kalamdaan.blogspot.in
सुंदर शृंखला...
ReplyDelete॥जय श्री कृष्ण॥
बहुत ही सुन्दर । ओरेS कान्हा नैनन को नाही चैन ।
ReplyDeleteजय कन्हैया लाल की……… बढिया धारावाहिक चल रहा है।
ReplyDeletesundar geet....
ReplyDeleteसुन्दर,अति सुंदर...कितना सुन्दर काव्यमय चित्र उकेरा है आपने.
ReplyDeleteबार बार पढकर भी मन तृप्त नहीं होता.
आपकी भक्तिमय काव्य प्रतिभा को दिल से नमन.
हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ.