Saturday, March 13, 2010

फेरों का फेर

ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
कहीं मंदिर के हैं फेरे
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
इक पल घुमा ले वापस
ज़रा ज़िन्दगी की पिक्चर
क्या खोया क्या पाया
इन फेरों के चक्कर में
पशुओं सा जीवन बस
बिता के जा रहा है
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले

अब फेरों के फेर से
मुक्त हो जा ओ प्यारे
कट जायेंगे सब तेरे
ये जन्म मरण के फेरे


13 comments:

  1. उस दिव्य द्रष्टा जगत नियन्ता के प्रति कर्तव्य से भरती हुई कविता ,,, हम तो बस यही कहेंगे
    ओ समग्र पालक अनुभूत करा दो
    अपनी उपस्थिति को ,,,,
    स्वयं निष्ठ कर दो मेरी स्थिति को ,,,
    इन विहंगम फेरो के झंझा वत से निकाल ,,,

    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. वही शैली वही भाषा,
    समाहित गूढ़ परिभाषा!
    वो देखो जा रही भागी,
    निराशा संग ले आशा!!

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  3. ये फेरे जन्म मरण के
    लगाये तू जा रहा है
    कोल्हू के बैल सा
    चलता ही जा रहा है
    कभी उनकी गली के फेरे
    कभी मंडप के हैं फेरे
    बस फेरों के फेर में
    फिरता ही जा रहा है
    कहीं रुसवाइयों के डेरे
    कभी डॉक्टर है घेरे

    SACHAI BAYAAN KI HAI VANDAN JI..

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  4. Jeevan ke Falsafe ko behatreen dhang se darshati kavita..

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  5. क्या बात है , लाजवाब लगी कविता ।

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  6. दर्शन के भाव लिये सुन्दर रचना

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  7. ik aur naya but jordar prayas, aapke lekhan main dino din paina pan aata ja raha hai, ishwar kare aapke lakhne ke chata dino din ujwal hokar failte rahe

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  8. वंदना जी ,
    बहुत सुन्दर, सहज दार्शनिक भाव लिए हुए एक अच्छी रचना !!

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  9. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई !

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  10. बढ़िया अन्दाज़ है ।

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