Saturday, March 13, 2010

कोई तो जगे

अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये
किसी को

गूंगा हूँ मगर
जुबान वालों को
शब्द बेचता हूँ
शायद कोई जुबाँ
के ताले खोले
कोई तो सत्य
की चादर ओढ़े

बहरा हूँ मगर
कान वालों को
गीत सुनाता हूँ
शायद सुनकर
किसी का तो
खुदा जगे
कोई तो वक़्त की
आवाज़ सुने

21 comments:

  1. आज तो बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र लगाए हैं!
    सोचने को विवश करते हैं!

    ReplyDelete
  2. काश कि इनकी भाषा सब समझ सकें

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    Sanjay kumar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. अँधा हूँ मगर
    आँख वालों को
    आईना बेचता हूँ
    शायद अपना अक्स
    नज़र आ जाये
    किसी को
    वंदनाजी
    सुंदर बाते शब्दों के माध्यम से आपने कही है. अच्छी रचना के लिए आभार!
    आपका अपना
    महावीर बी सेमलानी

    ReplyDelete
  5. अँधा हूँ मगर
    आँख वालों को
    आईना बेचता हूँ
    शायद अपना अक्स
    नज़र आ जाये
    किसी को

    बहुत सुन्दर, इस समाज को आईने की सख्त जरूरत है

    ReplyDelete
  6. बेहद सुन्दर व भावपूर्ण रचना लगी ........

    ReplyDelete
  7. waah......bahut hi badhiyaa, jagane ka mul mantra

    ReplyDelete
  8. waah kya baat hai vandna ji
    dhimi he sahi par kraanti to laaaunga ,,,,
    rookte hi sahi par lax to paaunga ,,,
    vo laakh mukre apne vaado se ,,,
    par mai har pal yaad dilaaunga ,,,
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

    ReplyDelete
  9. मैंने कल सही कहा था ना कि आप बहुत ही उम्दा लिखने लगी है। उसका एक उदाहरण इस रचना में मिल रहा है।

    ReplyDelete
  10. vandana ji,
    is bar bhi aapne kamaal likha hai...

    bahut he badhiya..

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर भाव.....सच कितने अंधे,गुने और बहरे हो गए हैं हम लोग....

    विचारणीय रचना...बधाई

    ReplyDelete
  12. sach me ek aaina dikhati si hi kavita hai aaj to.. shreshth rachna

    ReplyDelete
  13. waah bahut khoob

    viradhabhas ko bahut ache se pesh kiya hai!!

    अँधा हूँ मगर
    आँख वालों को
    आईना बेचता हूँ
    शायद अपना अक्स
    नज़र आ जाये................very well thought

    ReplyDelete
  14. सच है इन्सान गूंगा, बहरा और अँधा ही तो बना हुआ है .....आईना दिखाती नज़्म ......!!

    ReplyDelete
  15. बहुत ही अच्छी नज़्म है...सच्चाई बयाँ करती हुई....आज इन्सान ना तो सच्चाई देखना चाहता है ,ना सुनना और ना ही बोलना...

    ReplyDelete
  16. सच्ची और अच्छी नज़्म...ढेरों बधाईयाँ..
    नीरज

    ReplyDelete
  17. बहुत ग़ज़ब की कोशिश है .... पर किसी के कान में जू नही रेंग़ेगी .... मोटी चॅम्डी के हैं सब ...

    ReplyDelete