Saturday, March 26, 2011

निस्वार्थ्

कभी कभी शब्द एक खेल बन जाते हैं दिल और दिमाग के बीच ……कभी दिल के हाथ बिकते हैं तो कभी दिमाग के हाथों नीलाम होते हैं.………पर क्या कभी शब्दो को सही मुकाम हासिल होता है? क्या शब्दों की अपनी दुनिया मे उनका कोई निज़ी अस्तित्व होता है जब तक की अभिव्यक्त ना हो जायें ……किसी के हाथ की कठपुतली ना बन जायें तब तक शब्द सिर्फ़ शब्द बन कर ही रह जाते हैं …………अस्तित्व होते हुये भी अस्तित्वहीन …………क्या स्त्री और शब्दों मे कोई समानता है? शायद हाँ, तभी अपने स्वतंत्र अस्तित्व होते हुये भी अपनी पह्चान के लिये किसी के हाथों की कठपुतली बन जाते है दोनो………शायद दोनो का एक ही स्वभाव है………दूसरे को पहचान देना…………दूसरे के भावो को स्वंय मे समाहित करना और बिखर जाना…………खुद को मिटा देना मगर अपना जीना सार्थक कर देना ……………शायद ज़िन्दगी ऐसे भी जी जाती है ……निस्वार्थ्।

13 comments:

  1. इस दुनिया में सर्वाधिक शक्तिमान शब्‍द ही हैं और यदि स्‍त्री की बात की जाए तो वे भी सर्वाधिक शक्तिवान है। बस स्‍वयं के नजरिए की बात है कि हम स्‍वयं को शक्तिहीन माने या शक्ति का पुंज।

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  2. वंदना जी बिल्कुल सही कहा आपने शब्दों की जब तक अभिव्यक्ति ना हो उनका कोई अस्तित्व नहीं और उनका अस्तित्व वैसा ही बनता है जिस तरह उनकी अभिव्यक्ति होती है..... यानि शब्द कटपुतली समान है......... और हमारे समाज के हालात देखें तो यक़ीनन समानता लगती है शब्दों और स्त्री के जीवन में .....

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  3. शब्द वैसे तो पुरलिंग है,पर आपने उसे स्त्री बना दिया कोई बात नहीं,शब्द कभी मिटता नहीं और स्त्री -पुरुष का भेद मात्र स्थूल शरीर से है,अंदर में तो बस एक आत्म तत्व है सभी में,सत्-चित-आनन्द स्वरुप,विचार और भावों को व्यक्त करने वाले मन और बुद्धि में भी कोई लिंग भेद नहीं है.फिर स्थूल के भेद पर ही विशेष द्रष्टि क्यूँ ?

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  4. स्वार्थरहित भी रहना है, अस्तित्व भी बचाना है।

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  5. जीना तो मैं इसे ही मानता हूँ ...निस्वार्थ सेवा और अपने प्यारों को लगातार सहयोग !
    शुभकामनायें !

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  6. बहुत सटीक लिखा है , खुद को मिटा देना नगर जीवन सार्थक कर लेना ..

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  7. शायद दोनो का एक ही स्वभाव है………दूसरे को पहचान देना…………दूसरे के भावो को स्वंय मे समाहित करना और बिखर जाना…………खुद को मिटा देना मगर अपना जीना सार्थक कर देना ……………शायद ज़िन्दगी ऐसे भी जी जाती है ……निस्वार्थ्।

    सार्थक चिंतन ...

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  8. nihswarth me sukh hai , per uski ati bhi na ho ki nihswarthta ko zakhmi ker diya jaye karn ki tarah

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  9. शब्दों के दम पर ही किसी भी भाषा का अस्तित्व कायम है...बिना शब्दों के गुंजन की दुनिया की कल्पना क्या हम कर सकते है?...बहुत ही सुंदर आलेख!

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  10. वाह!
    शब्द और नारी का बहुत सटीक विस्लेषण किया है आपने!

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  11. अपना अस्तित्व होते हुए भी दुसरे के भावों को को समाहित कर होकर अपना जीवन सार्थक करना ...निस्वार्थ प्रेम ...
    शब्दों की सुन्दर परिक्रमा !

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  12. shabd hi hain jo nisvarth bhav se bhavon ka sampreshan karte rahte hain.

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