Saturday, July 2, 2011

आखिर कब तक ऐसा होगा?


(केरल में 18 वीं सदी में बने पद्मनाभास्वामी मंदिर के तहखाने से निकला एक टन सोना, 50000 करोड़ का खजाना बड़ी मात्र में हीरे जवाहरात , ९ फुट लम्बी सोने कि चैन, हजारों साल पुराने सोने के सिक्के  और ना जाने क्या क्या निकला है और दूसरा तहखाना खोला जाना बाकी है
ऐसे में कहा जा रहा है कि इस दौलत के दम पर पद्मनाभास्वामी मंदिर ट्रस्ट तिरुपति बालाजी ट्रस्ट को दौलत के मामले में पीछे छोड़कर देश का सबसे धनवान ट्रस्ट का खिताब हासिल कर सकता है। )


अभी ऊपर लिखी ये पोस्ट पढ़ी रूबी सिन्हा की........तो ये ख्याल आया
आखिर कब तक ऐसा होगा?

आज जहाँ देखो वहाँ जिस मंदिर में देखो वहीँ हर जगह सिर्फ यही सुनने को मिलता है कि अमुक मंदिर में  इतने किलो का मुकुट या इतने किलो की चेन चढ़ाई गयी .......
मंदिरों में इतना पैसा होना क्या आश्चर्य की बात नहीं है ? सभी जानते हैं कि  मंदिरों में श्रद्धालु अपनी कामना पूरी होने पर कुछ ना कुछ चढाते ही हैं  लेकिन मेरा कहना है कि यदि इतना पैसा मंदिरों में  है तो फिर 
हम सब क्यों सिर्फ इसी में लगे रह जाते हैं कि कौन सा मंदिर आगे हो गया और कौन सा पीछे , हमारी सोच सिर्फ यहीं आकर क्यूँ सिमट जाती है कि कौन सा मंदिर खजाने में आगे है और कौन सा पीछे ........हम ये क्यों नहीं सोच पाते कि ये पैसा भी काम आ सकता है  ....क्या फायदा इतना पैसा मंदिरों में पड़ा सड़ता रहे और देश की गरीब जनता दो वक्त की रोटी के लिए तरसती रहे ...........क्या भगवान पैसा चाहता है या बिना पैसे के खुश नहीं होता? बेशक कहना ये होगा कि लोग चढाते हैं तो कोई क्या करे ? जिनके काम पूरे होते हैं तो वो चढाते हैं इसमें मंदिर का क्या दोष? मगर प्रश्न अब भी अपनी जगह है कि ..........क्या मंदिर के कर्ताधर्ताओं का कोई फ़र्ज़ नहीं बनता?  जितना मंदिर की देखभाल और जरूरी खर्चों के लिए जरूरी हो उतना रखकर यदि उस पैसे का सही सदुपयोग करें तो क्या उससे भगवान नाराज हो जायेंगे? क्या उस पैसे को समाज , देश और गरीब जनता के कल्याण के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता? और यदि ऐसा किया जाता है तो ना जाने कितने लोगों का भला होगा और मेरे ख्याल से तो इससे बढ़कर और बेहतर काम दूसरा कोई हो ही नहीं सकता .............मगर ना जाने कब हम ये बात समझेंगे...........अब देखिये जम्मू कश्मीर श्राइन बोर्ड ने जनता कि सुविधा के लिए वहाँ का नक्शा ही बादल दिया चाहे वैष्णो देवी जाना हो या अमरनाथ .......और सबसे बड़ी बात इस कार्य में सरकार ने भी सहयोग दिया .......जब वैष्णो देवी के रास्तों को संवारा गया तब श्री जगमोहन जी ने वहाँ की कायापलट कर दी  .......तो क्या और मंदिरों या ट्रस्टों  के लोग ऐसा नहीं कर सकते ?............अब चाहे पैसा भ्रष्टाचार के माध्यम से बाहर गया हो या देश के मंदिरों में सड रहा हो क्या फायदा ऐसे पैसे का ? क्या इस पैसे के बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता ? क्या इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई जा सकती ?  मेरे ख्याल से तो मेरा देश कल भी सोने की चिड़िया था तो आज भी है जिस देश के मंदिरों में आज भी इतना पैसा बरसता हो वो कैसे गरीब रह सकता है ये तो हमारी ही कमजोरी और लालच है जो हमें आगे बढ़ने से रोकता है.............आखिर कब हमारी सोच में बदलाव आएगा? आखिर कब हम खुद से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए सोचेंगे?

26 comments:

  1. आपके विचारों से सहमत हूँ. पैसे का प्रयोग देश के विकास के लिए हो तो बेहतर है.

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  2. Eeshwar ne insaan se kabhee bhautik roopme kuchh nahee chaha....ye to insaan hain jo apnee mansikta eeshwar pe thopte rahte hain.

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  3. आपने सही मुद्दा उठाया है, जनता के हित में इसका उपयोग तो होता है पर इसको और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है .

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  4. kab tak --- anuttarit hai, khud se apne haath hai, khud se hi badlaaw hoga , zameen ko pakde rahna hoga

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  5. वंदना जी, मंदिर मस्जिद में ज्यादा ताक झाँक नहीं करनी चाहिए नहीं तो बहुत दुख होगा सार्थक लेख ऑंखें खोलने में सक्षम , आभार

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  6. पैसे का प्रयोग देश के विकास के लिए हो तो बेहतर है

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  7. sach kah rahi hain aap vandana ji..bhagwan ke naam par na jane kya kya hota hai...

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  8. दुकान के बजाय मंदिर ही खोल लेना चाहिये

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  9. आस्था अपनी जगह है .. यदि पैसे का सही उपयोग हो तो देश हमारा कहाँ से कहाँ पहुँच जाये .. न तो नेता यह सोचते हैं और न ही धार्मिक नेता ..धर्म के नाम पर जो होता है वो लोगों से छुपा भी नहीं है ...सार्थक लेख ...

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  10. बिलकुल सही कह रही है आप |

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  11. इस पैसे का सदुपयोग हो, देशहित में।

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  12. सारगर्भित आलेख। अब तो यह पेशा बनता जा रहा है।

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  15. दूकान खोले
    पाखंड के पुजारी
    मंदिर में भी

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  16. आस्था के दरबार में पाखंड का क्या काम .. धन दौलत सार्थक कार्यों में उपयोग में लाई जानी चाहिए ...
    जागरूक करती पोस्ट !

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  17. बिल्कुल सही लिखा है, हम विश्वास और श्रद्धा के लिए मंदिरों में करोड़ों दे सकते हैं जहाँ वह धन सिर्फ संपत्ति बन कर दबा दी जाती है. अगर इन्हीं देने वालों से कहा जाय कि मानवता के नाम पर कुछ करोड़ दे दें तो नहीं दे पायेंगे ,तब तो अपने चलने वालीमिलों और कंपनियों में लोगों का शोषण करने से बाज नहीं आयेंगे और उन्हीं पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान के आगे चढ़ौती चढ़ाई जाती है. ये श्रद्धा का मामला है लेकिन इस ईश्वर ने भी कहा है की मैं हर जीव में विद्यमान हूँ उसके सेवा करो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ. फिर हम क्या सोचते हैं?

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  18. आपने बिलकुल सही मुद्दा उठाया है...
    इन मंदिरों में पैसे चढाने वालों को देहरादून-मसूरी मार्ग के श्री प्रकाशेश्वर मंदिर एक बार जरूर दर्शन कर आना चाहिए...

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  19. @Er. Diwas Dinesh Gaur ji
    मै तो खुद यही चाहती हूँ जहाँ भी ऐसी सम्पत्ति हो उसका सदुपयोग हो।
    अच्छा एक बात बताइये पहले राजा के खज़ाने मे जनता से ही तो धन लेकर एकत्र किया जाता था टैक्स आदि के रूप मे या राजाओ को जीतकर्…………तो किसके लिये उपयोग मे लाया जाता था वो धन? देश और उसकी जनता के लिये ही ना…………तो आज भी हम उसी की बात कह रहे हैं। हमने ऐसा क्या गलत कहा है ।
    दूसरी बात भ्रष्टाचार से सभी त्रस्त है और उसका हश्र आप भी देख रहे है और मै भी…………मै ये नही कहती कि भ्रष्ट लोगो के हाथ मे धन जाये और उसका दुरुपयोग हो मेरा या इस देश के हर समझदार नागरिक का यही कहना होगा कि जनता की अमानत जनता के काम आये………कम से कम हमारे देश से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की बीमारी तो कुछ कम हो…………और ये किसी एक मन्दिर के लिये नही सभी धर्मो पर समान रूप से लागू हो और जो ना माने उसे देशद्रोही करार दिया जाये …………जो भी सम्पत्ति है जिस भी मन्दिर ,चर्च आदि मे जितनी उसके रखरखाव के लिये जरूरी है उतनी वो ही प्रयोग करे मगर उसके बाद तो जो बचती है वो समाज कल्याण के कार्यो पर खर्च की जाये तो इसमे बताइये क्या बुराई है?

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  20. aapke vicharon se sahmat hun...
    kabhi n kabhi to neend se jaagega jarur insaan... kab tak.. yah sabko milkar sochna hai...

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  21. वंदना ऐसी बातें अक्सर मेरे भी मन में उठती हैं...क्यूँ नहीं ट्रस्ट बनाकर जरूरत पड़ने पर गरीबो को पैसे दिए जाते हैं...उनके बच्चों की पढ़ाई के लिए....उनके रिश्तेदारों के इलाज़ के लिए...या क्या पता किए भी जाते हों.

    इन्ही नेक कामो में वे पैसे खर्च किए जाने चाहिए.

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  22. सबके अपने-अपने बैंक हैं। सब स्विस बैंक के भरोसे नहीं हैं।

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  23. Jabtak insaan apneaap ko bhram me rakhega,aisahee chalega!

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