Monday, May 14, 2012

कृष्ण लीला ………भाग 48




इधर कन्हैया कालिय के
मस्तक पर विराजते
जल के ऊपर आते थे
उधर बलभद्र जी मैया को समझाते थे
धैर्य धारण करो मैया
प्राणप्यारे अभी आते हैं
मगर ब्रजवासी ठौर नही पाते हैं
रुदन किये जाते हैं
मैया खुद को कोसती है
मेरा लाला डूबे और मै जीती रहूँ
मेरे जीवन को धिक्कार है
इधर नन्दबाबा मूर्छित हो गिर पडे
तब बलराम जी उन्हे चेत कराते हैं
और समझाते हैं
तभी यमुना में लहरें शोर करने लगीं
और बलभद्र जी बोल उठे
देखो कान्हा आता है
सभी उन्हें देखने को 
व्याकुल हो उठे 
इधर मोहन कालिया के 
मस्तक पर बंसी बजाते
जल के ऊपर आये
जिसे देख मैया बाबा और ब्रज वासी हर्षाये
प्रभु को उतार कालिया ने
रानियों सहित प्रणाम कर
रमणक द्वीप को प्रस्थान किया
उसी दिन से यमुना का 
विषतुल्य जल अमृतसम हुआ 




जब नंद् ने कमल फूल 
कंस को भिजवाए
उसे देख कंस का विश्वास दृढ हुआ
ये बालक ही मेरा काल है
अब ना प्राण बचेंगे
ये सोच कंस के प्राण सूख गए
धुंधक राक्षस को अब कार्य सौंप दिया
जाकर सब ब्रज वासियों को जला डालो
थके हारे ब्रजवासी
यमुना किनारे सोये थे
धुंधक ने आग चारों तरफ लगा दी
पशु पक्षी जलने लगे
देख ब्रजवासी घबरा गए
और कान्हा की शरण में आ गए 
ये देख कान्हा बोले
सब आँखें बंद करो
और अग्नि को अपने मुखे में रख शांत किया
यूँ सोचा सबका डाह दूर करने के लिए 
मैं जन्म लिया
अब यही मेरा कर्त्तव्य है
या शायद ये सोचा 
रामावतार में जानकी को सुरक्षित रख
अग्नि ने उपकार किया था 
आज उसे अपने मुख में रख सत्कार किया है
या शायद ये कारण होगा
कार्य का कारण में लय होता है
अर्थात मुख से अग्नि का प्रगटीकरण हुआ
तो मुख में ही उसका लय होना जरूरी था
या शायद
मुख में अग्नि शांत कर 
ये सन्देश दिया
भाव दावाग्नि को शांत करने के लिए
भगवान का मुख ब्राह्मन कहाते हैं
बिन पानी सब शांत हुआ 
तब ब्रजवासियों ने नेत्र खोल लिया
सब अचरज करने लगे
तब केशवमूर्ति बोल पड़े
जंगल  की आग जल्दी लगती है
वैसे ही बुझ जाती है
उन पर अपनी माया डाली है 
सबको यों ही लगा 
आग अपने आप बुझ गयी
सभी मंगलाचार करने लगे
और श्याम प्यारे संग झूमने लगे 
यूं मोहन सबका योगक्षेम वहन करते हैं 
जिन्होने स्वंय को उनके चर्णारविन्द मे समर्पित किया 



क्रमश: …………




10 comments:

  1. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  2. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  3. कृष्ण की भक्ति में मन रम जाए इससे बढ़कर सुख कहाँ...सुंदर प्रस्तुतिकरण.

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  4. बहुत सारे नाम, बहुत सारी कथा यास आती चली गई।

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  5. भक्ति-भाव से परिपूर्ण,सुन्दर रचना!

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  6. कृष्ण के जीवन के बहुत सेपहलुओं से परिचय मिल रहा है ... सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. कान्हा मन के विष को अमृत बना देते हैं...

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  8. बहुत ही सुंदर वर्णन भक्ति रस से सराबोर बेहद उम्दा भावपूर्ण रचना ..... जय श्री कृष्ण

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