Tuesday, May 29, 2012

कृष्ण लीला ……भाग 50


दोस्तों आज प्रभु की असीम कृपा से कृष्ण लीला इस मुकाम तक पहुँच गयी और अपने 50 पायदान पूरे किये उम्मीद है प्रभु आगे भी कृपा बरसाते रहेंगे और लीला का आनन्द दिलवाते रहेंगे.उनकी लीला को लिखने की हिम्मत मुझ जैसी अदना जीव तो नही कर सकती थी बस सब उन्ही की अहैतुकी कृपा है ये जो वो शब्द बनकर उतर रहे हैं और मुझे माध्यम बनाया है । सबका उन्हीं का उन्हीं को समर्पित है।





इक दिन नटवर रूपधारी 
यमुना किनारे मुरली बजाते थे 
राधा प्यारी सखियों सहित 
पनिया भरन को आई थीं
ग्वालों की भीड़ देख घबरायी थीं
माखनचोर खड़ा राह में
ये जरूर अब छेड़ेगा
राधा ने सखियों से कहा
इधर श्यामसुंदर ने
राधा  का रुख जान लिया
और सखाओं सहित
रास्ता छोड़ दिया
जब राधे हंसिनी सी
चाल चलती घड़ा भर
गोपियों के बीच 
चली आती थीं
तभी कान्हा ने जुगत लडाई
गोपियों के बीच आ गए
और एक कंकरी गगरी में मार
मधुर मुस्कान से 
सबके मन का हरण किया 
ये देख एक चतुर सखी ये बोल पड़ी
मोहन क्या बिगाड़ा हमने तुम्हारा
जो राह में ठिठोली करते हो
मधुर मुस्कान तिरछी चितवन से 
प्राण और मन हर लेते हो
वंशी की धुन हमारा मन हर लेती है
कहो कहाँ से तुमने ये
चित चुराना सीखा है
इतना सुन मोहन बोले 
जैसे तुमने अपनी छवि से
मेरे मन को मोहा है
वैसे ही तुमको भी ऐसा लगता  है
तब गोपियाँ बोल उठीं
तुम तो कान्हा बहुत बरजोरी करते हो 
कभी चीर खींच लेते हो
कभी धक्का दे देते हो
कभी गगरी फोड़ देते हो
कभी माखन चुराते हो
बाज आ जाओ इन बातों से मोहन
नहीं मैया को हाल बतायेंगी
फिर ऊखल से तुम्हें बन्धवाएँगी
इतना कह गोपियों ने
यशोदा से जाकर कहा
कहते लज्जा आती है
ऐसे हमें सताते हैं
हम यमुना पर ना जा पाती हैं
नंदरानी तुम्हारे लाल की
सब करतूत  तुम्हें सुनाती हैं
तब यशोदा ने उत्तर दिया
जब ऊखल से बांध देती हूँ
तो खुद ही छुड़ाने आती हो
पूरी सजा भी ना देने पाती हूँ
आज आने दो कान्हा को
ऐसी मार लगाऊँगी
तुम्हारी राह ना रोकेगा
बस एक बार और क्षमा कर दो
कह गोपियों को विदा किया
कान्हा ओट में खड़े सब सुनते थे
जाकर बोले ,जो  भी गोपियाँ कहती हैं
तुम उसे सच मान लेती हो
पर उन गोपियों का 
चरित्र क्यों नहीं जान लेती हो
बरजोरी कर मुझे 
कदम्ब के नीचे  ले जाती हैं  
फिर गाल पर मुक्का मारती हैं
और जब मटक मटक कर चलती हैं
तब गगरी फूट जाती है
और मेरा नाम लगाती हैं
तुमसे शिकायत करती हैं
इतना सुन यशोदा  चंद्रमुख देख विह्वल हुई 
क्रोध करना सब भूल गयी
अपने प्यारे को गोद में बिठाया है
और समझाया है
मना करने पर भी
क्यों उनके समीप जाते  हो
ये झूठी ग्वालिने हीं झूठी बात बनाती  हैं 
और हम माँ बेटे को उलझाती हैं
प्रतिदिन नवलीला करते हैं
मोहन सभी को ऐसे सुख देते हैं





पूर्व जन्म  संस्कार से 
राधा की प्रीती निराली थी
मोहन मूर्ति के दरस बिना
ठौर  कहीं ना पाती थीं
लोकलाज का भय सताता था
बाहर नहीं जा पाती थीं
मगर घर में रहकर भी
राधे का मन 
कान्हा की तरफ दौड़ लगाता  था 

चित को बहुत समझाती थीं
पर चितचोर की तरफ से
मोड़ नहीं पाती थीं
जब राधा ने ऐसी दशा अपनी पाई
तब  कान्हा से प्रकट प्रीती की राह अपनाई
अपने दिल का हाल 
गोपियों को सुनाया है
सखी मुझे ना लगे प्यारा अब घर बार
लोक लाज को दिया है त्याग
विरह में जब प्राण जायेंगे निकल
तब लज्जा बोलो जाएगी किधर
अब मोहन को पति बनाना है
यही मैंने मन में ठाना है
सुन ललिता आदि सखियाँ बोली हैं
राधे तू बड़ी भोली है
उस मनमोहन की मूरत बहुत सलोनी है
जो सबका दिल चुराती है
वंशी की धुन से 
प्यारे ने सब पर मोहिनी डारी है
हमारा भी वो ही हाल हुआ है
संसार के जड़ चैतन्य जीवों का
कौन है जो ना मोहित हुआ है
गर प्यारे हमें अपनाते हैं
फिर लाज के घूघट पट हम हटाती हैं
और उनकी  प्यारी बन जाती हैं 
कुछ ऐसे गोपियाँ राधा संग बतलाती हैं 
उनके विरह में दिन गुजारा करती हैं
संध्या में दर्शन कर 
ह्रदय तपन मिटाया करती थीं


क्रमश: ……....






9 comments:

  1. बहुत उम्दा प्रस्तुति...आभार

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  2. बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति....

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  3. बहुत बधाई, कान्हा की कृपा आप पर बनी रहे।

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  4. जय श्री कृष्ण...

    श्री हरी के चरित्र का वर्णन तो हर किसी को ही खुशी प्रदान करने वाला है, इसमें आश्चर्य की कोई भी बात नहीं.,

    कुँवर जी,

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  5. ५०वें भाग की प्रस्तुति के लिए बधाई !!
    रोचक प्रस्तुति...!!
    जय श्रीकृष्ण !!

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  6. क्या बात है आपकी वंदना जी.
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
    कृष्ण लीला की ५० वीं कड़ी के लिए
    हार्दिक आभार और बधाई आपको.

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