दोस्तों आज प्रभु की असीम कृपा से कृष्ण लीला इस मुकाम तक पहुँच गयी और अपने 50 पायदान पूरे किये उम्मीद है प्रभु आगे भी कृपा बरसाते रहेंगे और लीला का आनन्द दिलवाते रहेंगे.उनकी लीला को लिखने की हिम्मत मुझ जैसी अदना जीव तो नही कर सकती थी बस सब उन्ही की अहैतुकी कृपा है ये जो वो शब्द बनकर उतर रहे हैं और मुझे माध्यम बनाया है । सबका उन्हीं का उन्हीं को समर्पित है।
इक दिन नटवर रूपधारी
यमुना किनारे मुरली बजाते थे
राधा प्यारी सखियों सहित
पनिया भरन को आई थीं
ग्वालों की भीड़ देख घबरायी थीं
माखनचोर खड़ा राह में
ये जरूर अब छेड़ेगा
राधा ने सखियों से कहा
इधर श्यामसुंदर ने
राधा का रुख जान लिया
और सखाओं सहित
रास्ता छोड़ दिया
जब राधे हंसिनी सी
चाल चलती घड़ा भर
गोपियों के बीच
चली आती थीं
तभी कान्हा ने जुगत लडाई
गोपियों के बीच आ गए
और एक कंकरी गगरी में मार
मधुर मुस्कान से
सबके मन का हरण किया
ये देख एक चतुर सखी ये बोल पड़ी
मोहन क्या बिगाड़ा हमने तुम्हारा
जो राह में ठिठोली करते हो
मधुर मुस्कान तिरछी चितवन से
प्राण और मन हर लेते हो
वंशी की धुन हमारा मन हर लेती है
कहो कहाँ से तुमने ये
चित चुराना सीखा है
इतना सुन मोहन बोले
जैसे तुमने अपनी छवि से
मेरे मन को मोहा है
वैसे ही तुमको भी ऐसा लगता है
तब गोपियाँ बोल उठीं
तुम तो कान्हा बहुत बरजोरी करते हो
कभी चीर खींच लेते हो
कभी धक्का दे देते हो
कभी गगरी फोड़ देते हो
कभी माखन चुराते हो
बाज आ जाओ इन बातों से मोहन
नहीं मैया को हाल बतायेंगी
फिर ऊखल से तुम्हें बन्धवाएँगी
इतना कह गोपियों ने
यशोदा से जाकर कहा
कहते लज्जा आती है
ऐसे हमें सताते हैं
हम यमुना पर ना जा पाती हैं
नंदरानी तुम्हारे लाल की
सब करतूत तुम्हें सुनाती हैं
तब यशोदा ने उत्तर दिया
जब ऊखल से बांध देती हूँ
तो खुद ही छुड़ाने आती हो
पूरी सजा भी ना देने पाती हूँ
आज आने दो कान्हा को
ऐसी मार लगाऊँगी
तुम्हारी राह ना रोकेगा
बस एक बार और क्षमा कर दो
कह गोपियों को विदा किया
कान्हा ओट में खड़े सब सुनते थे
जाकर बोले ,जो भी गोपियाँ कहती हैं
तुम उसे सच मान लेती हो
पर उन गोपियों का
चरित्र क्यों नहीं जान लेती हो
बरजोरी कर मुझे
कदम्ब के नीचे ले जाती हैं
फिर गाल पर मुक्का मारती हैं
और जब मटक मटक कर चलती हैं
तब गगरी फूट जाती है
और मेरा नाम लगाती हैं
तुमसे शिकायत करती हैं
इतना सुन यशोदा चंद्रमुख देख विह्वल हुई
क्रोध करना सब भूल गयी
अपने प्यारे को गोद में बिठाया है
और समझाया है
मना करने पर भी
क्यों उनके समीप जाते हो
ये झूठी ग्वालिने हीं झूठी बात बनाती हैं
और हम माँ बेटे को उलझाती हैं
प्रतिदिन नवलीला करते हैं
मोहन सभी को ऐसे सुख देते हैं
पूर्व जन्म संस्कार से
राधा की प्रीती निराली थी
मोहन मूर्ति के दरस बिना
ठौर कहीं ना पाती थीं
लोकलाज का भय सताता था
बाहर नहीं जा पाती थीं
मगर घर में रहकर भी
राधे का मन
कान्हा की तरफ दौड़ लगाता था
चित को बहुत समझाती थीं
पर चितचोर की तरफ से
मोड़ नहीं पाती थीं
जब राधा ने ऐसी दशा अपनी पाई
तब कान्हा से प्रकट प्रीती की राह अपनाई
अपने दिल का हाल
गोपियों को सुनाया है
सखी मुझे ना लगे प्यारा अब घर बार
लोक लाज को दिया है त्याग
विरह में जब प्राण जायेंगे निकल
तब लज्जा बोलो जाएगी किधर
अब मोहन को पति बनाना है
यही मैंने मन में ठाना है
सुन ललिता आदि सखियाँ बोली हैं
राधे तू बड़ी भोली है
उस मनमोहन की मूरत बहुत सलोनी है
जो सबका दिल चुराती है
वंशी की धुन से
प्यारे ने सब पर मोहिनी डारी है
हमारा भी वो ही हाल हुआ है
संसार के जड़ चैतन्य जीवों का
कौन है जो ना मोहित हुआ है
गर प्यारे हमें अपनाते हैं
फिर लाज के घूघट पट हम हटाती हैं
और उनकी प्यारी बन जाती हैं
कुछ ऐसे गोपियाँ राधा संग बतलाती हैं
उनके विरह में दिन गुजारा करती हैं
संध्या में दर्शन कर
ह्रदय तपन मिटाया करती थीं
क्रमश: ……....
बहुत उम्दा प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteBadi khushi ki baat hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत बधाई, कान्हा की कृपा आप पर बनी रहे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना! आभार...!
ReplyDeleteआँखें तृप्त हुईं
ReplyDeleteएक और रोचक अंक।
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण...
ReplyDeleteश्री हरी के चरित्र का वर्णन तो हर किसी को ही खुशी प्रदान करने वाला है, इसमें आश्चर्य की कोई भी बात नहीं.,
कुँवर जी,
५०वें भाग की प्रस्तुति के लिए बधाई !!
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति...!!
जय श्रीकृष्ण !!
क्या बात है आपकी वंदना जी.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
कृष्ण लीला की ५० वीं कड़ी के लिए
हार्दिक आभार और बधाई आपको.
भगवान जब चलने लगे तो पहली बार घर से बाहर
ReplyDeleteनिकले. ब्रज से बाहर भगवान की मित्र मंडली बन
गयी. सुबल, मंगल, सुमंगल, श्रीदामा, तोसन,
आदि मित्र बन गये. सब मिलकर हर दिन माखन
चोरी करने जाते. चोर मंडली के अध्यक्ष स्वयं माखन
चोर श्रीकृष्ण थे.सब एक जगह इकट्टा होकर योजना बनाते कि किस गोपी के घर चोरी करनी है .
आज ‘चिकसोले वाली’ गोपी की बारी थी.भगवान
ने गोपी के घर के पास सारे
मित्रों को छिपा दिया और स्वयं उसके घर पहुँच
गये.दरवाजा खटखटाने लगे,भगवान ने अपने बाल और
काजल बिखरा लिया. गोपी ने दरवाजा खोला, तो श्रीकृष्ण को खड़े देखा. गोपी बोली – ‘अरे
लाला! आज सुबह-सुबह यहाँ कैसे? कन्हैया बोले –
‘गोपी क्या बताऊँ! आज सुबह उठते ही, मैया ने
कहा लाला तू चिकसोले वाली गोपी के
घर चले जाओ और उससे कहना आज हमारे घर में संत आ गए
है मैंने तो ताजा माखन निकला नहीं, चिकसोले वाली तो बहुत सुबह ही ताजा माखन निकल लेती है
उनसे जाकर कहना कि एक मटकी माखन दे दो, बदले में
दो मटकी माखन लौटा दूँगी . गोपी बोली –
लाला! मै अभी माखन की मटकी लाती हूँ और
मैया से कह देना कि लौटने की जरुरत नहीं है
संतो की सेवा मेरी तरफ से हो जायेगी .झट गोपी अंदर गयी और माखन की मटकी लाई और
बोली - लाला ये माखन लो और ये मिश्री भी ले
जाओ. कन्हैया माखन लेकर बाहर आ गए और गोपी ने
दरवाजा बंद कर लिया .भगवान ने झट अपने सारे
सखाओ को पुकारा श्रीदामा, मंगल, सुबल,
जल्दी आओ, सब-के-सब झट से बाहर आ गए भगवान बोले जिसके यहाँ चोरी की हो उसके दरवाजे पर बैठकर
खाने में ही आनंद आता है, झट सभी गोपी के दरवाजे के
बाहर बैठ गए, भगवान ने सबकी पत्तल पर माखन और
मिश्री रख दी. और बीच में स्वयं बैठ गए
सभी सखा माखन और मिश्री खाने लगे. माखन के
खाने से पट पट और मिश्री के खाने से कट-कट की, जब आवाज गोपी ने अंदर से सुनी तो वह सोचने
लगी कि ये आवाज कहाँ से आ रही है और जैसे ही उसने
दरवाजा खोला तो सारे मित्रों के साथ श्रीकृष्ण
बैठे माखन खा रहे थे. गोपी बोली – ‘क्यों रे कन्हैया!
माखन संतो को चाहिए था या इन चोरों को?
भगवान बोले -'देखो गोपी! ये भी किसी संत से कम नहीं है सब के सब नागा संत है देखो किसी ने भी वस्त्र
नहीं पहिन रखे है, तू इन्हें दंडवत प्रणाम कर.
गोपी बोली - अच्छा कान्हा! इन्हें दंडवत प्रणाम
करूँ, रुको, अभी अंदर से डंडा लेकर आती हूँ .गोपी झट
अंदर गयी और डंडा लेकर आयी. भगवान ने कहा -
'मित्रों! भागो, नहीं तो गोपी पूजा कर देगी. एक दिन जब मैया ताने सुन सुनकर थक गयी तो उन्होंने
भगवान को घर में ही बंद कर दिया जब आज
गोपियों ने कन्हैया को नहीं देखा तो सब के सब
उलाहना देने के बहाने नंदबाबा के घर आ गयी और
नंदरानी यशोदा से कहने लगी- यशोदा तुम्हारे
लाला बहुत नटखट है, ये असमय ही बछडो को खोल देते है, और जब हम दूध दुहने जाती है तो गाये दूध
तो देती नहीं लात मारती है जिससे
हमारी कोहनी भी टूटे और दुहनी भी टूटे.घर मै
कही भी माखन छुपाकर रखो, पता नहीं कैसे ढूँढ लेते है
यदि इन्हें माखन नहीं मिलता तो ये हमारे सोते हुए
बच्चो को चिकोटी काटकर भाग जाते है, ये माखन तो खाते ही है साथ में माखन की मटकी भी फोड़ देते
है*. यशोदा जी कन्हैया का हाथ पकड़कर गोपियों के
बीच में खड़ा कर देती है और कहती है कि ‘तौल-तौल
लेओ वीर, जितनों जाको खायो है, पर गली मत
दीजो, मौ गरिबनी को जायो है’. जब गोपियों ने ये
सुना तो वे कहने लगी - यशोदा हम उलाहने देने नही आये है आपने आज लाला को घर में ही बंद करके
रखा है हमने सुबह से ही उन्हें नही देखा है इसलिए हम
उलाहने देने के बहाने उन्हें देखने आए थे. जब
यशोदा जी ने ये सुना तो वे कहने लगी- गोपियों तुम
मेरे लाला से इतना प्रेम करती हो, आज से ये सारे
वृन्दावन के लाल है . *आध्यात्मिक पक्ष- भगवान समय ही बछडो को खोल देते है भगवान को बँधा हुआ जीव
अच्छा नहीं लगता इसलिए भगवान जीव को मुक्त कर
देते है. और सोता हुआ जीव
भी अच्छा नहीं लगता इसलिए भगवान उसे उठा देते है.
माखन ये मन है, और मटकी ही ये शरीर है, भगवान जब
अपने भक्त का मन चुरा लेते है तो फिर इस देह का क्या काम इसलिए भगवान इसे फोड़ देते है.