Monday, June 4, 2012

कृष्ण लीला ……भाग 51




इधर वर्षा ऋतु ने 
अपना रंग जमाया है 
ताप से दग्ध ह्रदयों को
शीतलता पहुँचाया है
घनघोर घन घिर घिर आते हैं
दामिनी दमकने लगती है
सूर्य चन्द्रमा तारे
सब ढक जाते है 
आकाश यूँ शोभा पाता है
मानो जैसे गुण स्वरुप  होने पर भी
जीव माया के आवरण में ढक जाता है
अपना स्वरुप भूल जाता है
आठ महीनों तक सूर्य ने
मानो पृथ्वी से जल ग्रहण किया हो
और अब  मानो उसने जल बरसा
राजा समान कर्त्तव्य निभाया हो
जैसे दयालु पुरुष दया परवश
अपना जीवन न्योछावर करते हों 
वर्षा ऋतु का निराला वर्णन किया है
वर्षा होने से चहुँ ओर
हरियाली का पहरा हुआ है
वृन्दावन की छटा तो 
जैसे बड़ी निराली है
वृक्ष फलों से लद गए हैं
पक्षी मीठी बोली बोलने लगे हैं
नदी- नाले तालाब सब भर गए हैं
पर्वतों से झर- झर झरने झर रहे हैं
वृक्षों की पंक्तियाँ मधुधरा
उंडेल रही हैं
गोप गोपियाँ मल्हार गाते हैं
वस्त्राभूषण पहन इठलाते हैं
ऐसे वर्षा ऋतु  ने रंग जमाया है
वृन्दावन को मोहक बनाया है
इसमें प्रभु मनोहारी लीलाएं करते हैं
सभी जीवों को सुख पहुंचाते हैं 


वर्षा ऋतु के बीतने पर
शरद ऋतु ने पदार्पण किया
जल भी निर्मल हो गया
वायु मंद बहने लगी
कमलों से जलाशय भरने लगे
मानो योगभ्रष्ट पुरुषों का चित्त 
निर्मल हो गया हो
और फिर से योग की तरफ
मुड गया हो
शरद ऋतु ने पृथ्वी की कीचड़
मटमैलापन सब मिटा दिया
जैसे भगवान की भक्ति  जीवों के 
कष्टों और अशुभों का नाश करती है 
समुद्र का जल भी 
धीर गंभीर और शांत हुआ
मानो आत्माराम पुरुष का मन
निः संकल्प होने पर शांत हुआ
जैसे राजा के आगमन से 
चोर डाकू छुप जाते हैं
और प्रजा निर्भय हो जाती है
वैसे ही सूर्योदय के कारण
कुमुदिनी को छोड़ 
सभी कमल खिल जाते हैं
ऐसी शरद ऋतु ने अब 
अपना प्रभाव बनाया है 
जिसने वृन्दावन को
खास बनाया है


क्रमश:…………

5 comments:

  1. वृन्दावन का कृष्ण लुभाने आ गया ...

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  2. बहुत मनमोहक वर्णन...आभार

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  3. कान्हा की उपस्थिति सारा वातावरण सरसमय हो जाता है।

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  4. कृष्ण जी की लीला पढकर देखकर मन झूम जाता है।

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
    ऐसा लगता है रामचरित्र मानस
    के अरण्य काण्ड में वर्णित
    ऋतुओं का साक्षात दर्शन हो रहा हो.

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