Sunday, April 25, 2010

ओ मेरे प्यारे

सुनो 
तुम्हें ढूंढ रही हूँ
जन्मों से 
रूह आवारा
भटकती 
फिरती है
इक तेरी 
खोज में
और तू 
जो मेरे
वजूद का 
हिस्सा नहीं
वजूद ही 
बन गया है
ना जाने 
फिर भी
क्यूँ मिलकर भी
नहीं मिलता
सिर्फ अहसासों में
मौजूद होने से
क्या होगा 
अदृश्यता में
दृश्यता को बोध 
होने से क्या होगा
नैनों के दरवाज़े से
दिल के आँगन में
अपना बिम्ब तो 
दिखलाओ 
इक झलक 
पाने को 
तरसती 
इस रूह की
प्यास तो 
बुझा जाओ 
ओ मेरे प्यारे
राधा सा विरह 
तो दे दिया
मुझे भी अपनी 
राधा तो बना जाओ

24 comments:

  1. श्याम के रंग में रंगी इस पोस्ट की तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं!
    बहुत सुन्दर रचना है!

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  2. हे री मैं तो प्रेम दीवानी
    मेरा दर्द न जाने कोय .....

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  3. Kaise kanhu , kanhi shuru karte hi shabd khatm na ho jaye.

    Ati Sunder

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  4. me teri diwani ban gai gai he shayam mujhe apna le

    bahut khub

    shekhar kumawat

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  5. prem rang na padwe feeka..
    aap roj hi likhti hain kya, ya pahle ke likhe hain ye sare?/

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  6. और तू
    जो मेरे
    वजूद का
    हिस्सा नहीं
    वजूद ही
    बन गया है
    बहुत ही गहरी पंक्तियाँ...सुन्दर रचना

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  7. Bahut khoob ... Raadha sa virah de kar Raadha nahi banaata ... bahut hi ache bhaav hain .. meetha sa ulhaana deti hai ye khoobsoorat rachna ..

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  8. prem ke pavitra ehsaas me lipti ek khubsurat kavita...
    kafi accha laga padhkar.
    regards-
    #ROHIT

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  9. prem ke pavitra ehsaas me lipti ek khubsurat kavita...
    kafi accha laga padhkar.
    regards-
    #ROHIT

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  10. कृष्ण के प्रेम में पगी खूबसूरत कृति....मन आनंदित हुआ ..

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  11. बहुत अच्छी पोस्ट।

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  12. waah mujhe radha bana to jao..bahut khoob...

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  13. बहुत सुन्दर रचना ... ह्रदय की ब्याकुलता को दर्शाती ...

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  14. प्रेम की व्याकुलता दर्शाती भावपूर्ण रचना
    .......हार्दिक शुभकामनाएं

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  15. आपने राधा का विरह और आम भारतीय स्त्री की पीड़ा को सफल अभिव्यक्ति दी है।
    वजूद बन गया ैै ना जाने फिर भी कहकर आप बहुत कुछ कह देती ह।

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  16. सच में वंदना जी उस अनन्त शक्ति से विरह का जो अहसास है ,, आत्मा की जो तड़पन है , है वो ना जाने कितने दुखो के बराबर है ,,,,,आत्मा की छट पटाहट और मिलन की उत्कंठा की हद दिखाती रचना
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  17. aapne bahutahi sunder shabdon ka guldasta pesh kiya hai, dhanyawaad!

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