Saturday, April 3, 2010

ये किस मोड़ पर ?..........भाग ३

गतांक से आगे ...........................
अपने हालात के बारे में ना तो निशि किसी से कह सकती थी और ना ही सहन कर पा रही थी. उसे तो यूँ लगा जैसे स्वच्छंद आकाश में विचरण करने वाले पंछी को किसी ने घायल कर दिया हो और वो फ़ड्फ़डाता हुआ जमीन पर आ गिरा हो. धीरे -धीरे निशि  डिप्रेशन में चली गयी क्यूंकि अन्दर की घुटन उसे जीने नहीं दे रही थी. डॉक्टर भी कितनी ही दवाइयां दे रहे थे मगर वो उससे उबर नहीं पा रही थी . एक दिन जब वो नेट पर बैठी थी तो उसकी एक नेट फ्रेंड जो एक महिला थी, उससे उसने अपने मन की सारी बातें कहीं. उसे कहने के बाद वो अपने को कुछ हल्का महसूस करने लगी . उसकी नेट दोस्त जिसका नाम रिया था , उसने निशि को समझाया----- नेट की आभासी दुनिया के बारे में बताया , यहाँ कोई किसी का नहीं होता , जो अपने होते हैं सिर्फ वो ही  अपने होते हैं ,ये दुनिया तो इक छलावा है ,कुछ पल गुजारने का साधन मात्र है.  रिया ने निशि को कहा कि अगर उसे अपने पति पर , उसके प्रेम पर पूर्ण विश्वास है तो अपने पति को विश्वास में लेकर उनसे सारी बात कह दे तभी उसके दिल- दिमाग को सुकून मिल सकेगा  शायद तब वो अपने पछतावे से बाहर आ पायेगी और फिर तुमने कोई इतना बड़ा गुनाह तो किया  नहीं है कि जिसकी माफ़ी ना मिल सके .
रिया की बात सुनकर निशि उलझन में पड़ गयी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. क्या सारी बातें राजीव को बता दे ? क्या ये सब सुनकर राजीव उसे माफ़ कर देगा ? क्या राजीव की जगह यदि  वह होती तो क्या उसे माफ़ कर पाती ? ना जाने कितने अनगिनत प्रश्न उसके दिमाग में दस्तक देने लगे. जितना वो इन सबसे दूर रहने की कोशिश करती उतना ही खुद  को इन प्रश्नों के चक्रव्यूह में उलझा पाती. इसी कशमकश में फँसी निसी को एक दिन नर्वस ब्रेक डाउन हो गया.  
जब राजीव ने उसकी इतनी बुरी हालत देखी तो  डॉक्टर के कहने पर अपना सारा व्यवसाय छोड़कर उसे घुमाने के लिए शिमला ले गया मगर वहाँ का सुरम्य वातावरण भी निशि के जीवन में कोई बदलाव ना ला पा रहा था. जब मन में अन्धेरा हो तो बाहर की रौशनी भी फीकी पड़ जाती  है .राजीव अपनी तरफ से हर भरसक कोशिश करता निशि का मन दूसरी तरफ लगाने का मगर निशि अपने अंतर्मन की पीड़ा से उबर नहीं पा रही थी . एक तरफ  तो मनोज की बेवफाई , धोखा और दूसरी तरफ उसकी गृहस्थी , प्यार करने वाला पति और आज्ञाकारी बच्चे. इन हालातों ने उसे तोड़कर रख दिया था और वो पछतावे की आग में जल रही थी. फिर एक दिन जब राजीव के बहुत कुरेदने पर , अपने प्यार का  वास्ता देने पर निशि ने उसे सब बताने का निर्णय लिया. उसने सोचा की रोज घुट-घुटकर जीने से तो अच्छा है कि एक ही बार अपनी गलती को स्वीकार कर ले तो शायद जीना आसान हो जाये...............
क्रमशः ......................

9 comments:

  1. har bar ki tarha subh kamnaye


    http://kavyawani.blogspot.com/


    shekhar kumawat

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  2. यह अंक भी बढ़िया रहा!
    कहानी बहुत अच्छी चल रही है!

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  3. बहुत ही सुन्दर और रोचक कहानी है! मैंने दोनों भाग आज एक साथ पढ़ा और बेहद अच्छा लगा! बधाई!

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  4. कहानी बहुत ही रोचक तरीके से आगे बढ़ रही है...अगली कड़ी का इंतज़ार

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  5. ओह!! कहीं निशि का यह निर्णय...सब बता देने का...आगे की कड़ी का इन्तजार लग गया है..देखिये राजीव की क्या प्रतिक्रिया होती है...

    बहुत रोचक मोड़ पर है कहानी.

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  6. कहानी का तीसरा अंश बहुत सच्चा लगा .एक औरत की मनोदशा का एकदम सही चित्रण किया है ..बिलकुल हकीकत महसूस हुई .इस आभासी दुनिया और उससे होने वाली परेशानियो का सही वर्णन है ये..अक्सर औरते इन हालातो का शिकार हो जाती हैं.और फिर बड़ी कशमकश मै जीने लगती है ..जब इन हालातो से निपट नहीं पति है तो गहन मानसिक अवसाद का सामना करती है जिससे पूरा परिवार पीड़ित हो जाता है...निशा की दोस्त रिया ने बहुत ही अच्छा किरदार निभाया जो उसे इस दुनिया से अवगत कराया और सच की राह पर चलने का रास्ता दिखया ..हालाकि निशा के लिए इतना आसान काम नहीं है फिर भी रिया ने एक सच्चे दोस्त की तरह उसे प्रेरित किया ...यही दोस्ती होती है ...निशा की घुटन का बखूबी चित्रण ....उसकी कशमकश की क्या वो राजीव की जगह होती तो माफ़ कर देती?बहुत अच्छा प्रयास किया ...राजीव ने भी एक अच्छे पति की तरह साथ देने की कोशिश की ..उसे बहार ले जाकर....
    यहाँ तक का चित्रण काफी सुन्दर और सजीव है ..अब आगे देखते है क्या होता है?उम्मीद है कुछ अच्छा अंत आएगा जो एक सबक होगा सबके लिए....

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