Sunday, August 5, 2012

कृष्ण लीला ………भाग 60


एक दिन राधा यमुना
जल भरने जाती थीं
तभी मोहन से भेंट हुई
हाथ पकड़ कहने लगीं
तुमने मेरा मन चुरा लिया
मेरा तन घर में रहता है
चंचल मन दिन रात
तुम्हारे पीछे फिरा करता है
मेरा मन मुझे वापस कर दो
सुन मोहन ने बतलाया
प्यारी तुम्हारे विरह में
मेरा भी यही हाल हुआ
तभी ललिता आदि सखियों को देख
मोहन ने वन की राह पकड़ी
आज तो  मिलन की चोरी पकड़ी गयी
लज्जित हो राधे घर आ गयी
पर तारे गिनते- गिनते रैन कटी
प्रातः अपना हार पल्लू में बांधा
खोने का बहाना बनाया
जल्दी आ जाऊंगी कह श्याम से
मिलने को निकल पड़ीं
जा नन्द जी के पिछवाड़े आवाज़ लगायी
ललिता मैं वंशीवट जाती हूँ
तुम भी जल्दी आना
इधर मोहन ने पहला ग्रास उठाया था
राधा की आवाज़ ने
चमत्कार दिखलाया था
ग्रास छोड़ बहाना बना
फ़ौरन चल दिए
ये देख मैया अचंभित हुई
तब ग्वालबालों ने राज बतलाया
मगर माँ को ना विश्वास हुआ
इस प्रकार दोनों ने मिलन जारी रखा
इक दिन मोहन आधी रात
राधा से मिलने पहुंचे
और प्रातः जब घर से निकले
सखियों ने देख लिया
अब क्या बहाना बनाऊँ
अब कैसे मुकर जाऊँ
मगर सखियाँ पूछतीं
उससे पहले श्यामा ने बात बनाई
आज श्यामसुंदर ना जाने
हमारे घर के आगे से होकर
कहाँ जाते थे
यही देखने मैं बाहर आई हूँ
चतुर सखियाँ राधा की
चालाकी समझ गयीं
हमारे पूछने से पहले ही
राधा ने कैसी बात बना दी
सब सखियाँ जान गयीं
इधर राधा के मन में
अभिमान का अंकुर उपजा
सबसे ज्यादा मोहन
मुझे चाहते हैं
अब दूसरी किसी सखी से
बोले तो झगडा करूंगी
तभी केशवमूर्ति को झरोखे से
झांकते देखा
घर -घर क्या तांका- झांकी करते हो
ये बात ना हमको है भाती
सुन मोहन बिना कुछ कहे
वहाँ से चल दिए
जब राधा ने देखा
मोहन भीतर नहीं पधारे
तब बेहद लज्जित हो
द्वार पर दौड़ गयीं
वहाँ उन्हें ना पाकर अचेत हुईं
चेत आने पर
ललिता आदि सखियों के पास पहुँच गयीं
सारा हाल बता दिया
अब कोई उपाय करो
उनके दर्शन करवा दो
अब ना ऐसा मान करुँगी
कह राधा अचेत हुई
जब सखियों  ने देखा
ये विरहाग्नि में दग्ध हो
प्राण तज देगी
तब ललिता ने जा
सारा वृतांत
मुरलीमनोहर से कहा
सुन व्याकुल हो मोहन दौड़े आये
आते ही श्यामा को
श्याम ने ह्रदय से लगाया
जब दोनों एक दूजे में खोये थे
तभी वो दृश्य ललिता ने
अन्य सखियों को दिखलाया
दोनों की प्रीत का भाव
सबको समझ आया
इधर मोहन श्यामा पर
ऐसे मोहित हुए
  कि सुध- बुध तन- मन की भूल गए
वस्त्र आभूषण मुरली सब
राधा पर न्योछावर किया
इधर राधा भी ऐसी मोहित हुईं
स्वयं मोहन बन गयीं
उधर श्याम ने स्त्री वेश बनाया
लहंगा चुनरिया पहन
माथे पर बिंदिया
पाँव  में पायल पहन
घूंघट ड़ाल राधा रूप बनाया
अब मोहन राधा रूप में रूठ गए
और राधा  मोहन बन
उन्हें मनाने लगी
बार -बार चरणों में गिर
विनती करने लगीं
उस पल ना राधा को भान रहा
स्त्री- पुरुष कौन है
वो ना ध्यान रहा
जब राधा विह्वल हुई
तो मोहन ने अपनी माया का हरण किया
दोनों स्त्रीरूप में वंशीवट को चले
राह में चन्द्रावली ने घेर लिया
चन्द्रावली ने सारा हाल जान लिया
और राधा से पूछने लगी
कहो राधे ये नयी नवेली
साँवली सूरत मोहनी मूरत
कहाँ से है आई
सुन राधा ने बतलाया
ये मथुरा से है आयी
ललिता संग दधि बेचन
जब में मथुरा जाती थी
तभी हमारी थी जान- पहचान हुई
आज मिलने को आई है
इधर मोहन प्यारे ने
चेहरा घूंघट से ढका
कहीं सखियों ने पहचान लिया
तो बहुत ठिठोली करेंगी
पर चन्द्रावली भी कम ना थी
उसने भी मुँह देखने की ठानी
घूंघट उठाकर बोली
मुझसे क्यों लज्जा करती हो
मैने तुमको पहचान लिया
और गाल पर गुलचा धर दिया
ये देख मोहन ने आँखें नीची कीं
चंद्रावली ने राधा को समझाया
इस सखी से तुमने
अच्छा मिला दिया
हमारी प्रीत भी छोड़ दी
तुम्हें अपने सुख के सिवा
ना किसी का सुख भाया
स्वयं को छिपाकर रखना
वृथा जब  मोहन ने जाना
कि इसने मुझे है पहचाना
तब मोहन ने चन्द्रावली को
गले से लगाया
और उसके मन को
सुख पहुँचाया
इसी तरह मोहन सबको
सुख पहुंचाते थे
हर गोपिका के दिल को भाते थे


क्रमश: …………





14 comments:

  1. Kamaal ka likh rahee hain aap!

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  2. कल 07/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई

    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई

    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रकरण..

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  6. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  7. बहुत ही मनभावन प्रस्तुति...

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  8. बहुत सुन्दर सृजन , आभार.

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊंगा

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  9. न जाने क्यूँ यह प्रस्तुति मेरी नजर में अभी तक नही आई.

    मोहन राधे के अनुपम अलौकिक प्रेम से शायद मेरी मति है भरमाई.

    पर आज कृष्णजन्माष्टमी को दी है आज मुझे यह दिखलाई.

    बधाई,बधाई वन्दना जी,बहुत बहुत बधाई.

    नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैयालाल लाल की.

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  10. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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