Sunday, August 12, 2012

कृष्ण लीला रास पंचाध्यायी ……भाग 62


एक दिन नारद जी को राह में
कामदेव दिखलाई दिया
दुष्ट सामने देख
नारदजी ने रास्ता बदल दिया
पर कामदेव भी कम घाघ नहीं था
उसे भी अपने होने पर
बहुत ही गर्व था
अपने बल से उसने
शंकर  आदि सबको था जीता
अब लड़ने के लिए
नया योद्धा था ढूँढता फिरता
नारद जी को देख आवाज़ लगायी
ओ तुम्बड़ी  वाले किधर जाते हो
ज़रा इधर आओ
क्यूँ रास्ता बदल रहे हो
मुझसे तुम क्यूँ डर रहे हो
सुन नारद जी बोले
भैया ऐसी ना कोई बात हुई
कहो मुझसे है क्या काम तुम्हें
लड़ना मरना जानते हो क्या
सुन नारद जी ने वीणा बजा दी
श्री मन नारायण नारायण
की धुन उसको सुना दी
क्रोधित हो कामदेव बोला
मैं लड़ने की बात कहता हूँ
और तुम्हें भजन का चस्का लगा है
 नारद जी बोले ये तो मेरे
रोम रोम में बह रहा है
लड़ना भिड़ना नहीं हमारा है काम
सुन कामदेव ने बचने की
सिर्फ एक राह बतलाई
यदि लड़ना नहीं जानते हो
तो कोई लड़ने वाला बतला दो
सुन नारद जी की सांस में सांस आई
बोले लड़ने वाला बतला देता हूँ
उसका सभी पता ठिकाना
मैं तुम्हें देता हूँ
मन में सोचा
एक बार कहीं उसने हाथ मिला लिया
ज़िन्दगी भर की ये खुजली
सारी मिट जाएगी
पर प्रकट में बोले
देखो धरती पर ब्रज क्षेत्र में चले जाओ
वहाँ नन्द बाबा के आँगन में
तुम्हें वो मिल जायेगा
यदि वहाँ भी ना मिले तो
सीधे वंशीवट जाना
कदम्ब के नीचे
अधरों पर वंशी धरे
जो तीन जगह से टेढ़ा है
खड़ा तुम्हें मिलेगा
सुन कामदेव ने कहा
तुम्बड़ी वाले बाबा
गर बात ना तुम्हारी सच हुई
तो तीनो लोकों में चाहे
कहीं चले जाना
मेरे हाथों से ना बच पाओगे
सुन नारद जी बोले
तुम एक बार चले तो जाओ
तुम्हारे सभी मनोरथ सफल होंगे
सुन कामदेव ने वृन्दावन का रुख किया
जैसा नारद ने था बतलाया
वैसा ही सब वहाँ पाया



कदम्ब के नीचे पीताम्बरी ओढ़े
श्यामल मूरत नैन बंद किये
मुरली मधुर बजाती  थी
जिसकी धुन में कामदेव की
मति भी भ्रमित हुई
कामदेव मुरली की धुन सुन
सुध बुध सारी भूल गया
आँख बंद कर समाधि में डूब गया
तीन गज़ब वहाँ पर हो रहे थे
काले कन्हैया काली कमरिया
उस पर काला यमुना का नीर
तीन कालों ने कैसा समा बनाया था
जड़ चेतन सबका मन भरमाया था
जब कन्हैया ने कामदेव को
आँख बंद किये मगन देखा
तब कामदेव को हिलाकर सचेत किया
कहो कामदेव यहाँ कैसे हो आये
सुन कामदेव बोला
तुम्हें किसने है मेरा नाम बतलाया
तुम्हारा नाम तो बच्चा बच्चा जानता  है
मैंने कह दिया तो कौन सी बड़ी बात कही
तुम अपने आने का कारण बतलाओ
सुन कामदेव बोला
मैं कृष्ण से मिलने आया हूँ
कान्हा बोले  मैं ही हूँ बोलो
 क्या काम मुझसे आ पड़ा
सुन कामदेव बोला
मैं तुमसे लड़ना चाहता हूँ
इतना सुनते ही कन्हैया ने
जोर से हँसना शुरू किया
कहाँ तो अभी कन्हैया
बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे
कहाँ एकदम छोटे बालक बन गए
और कामदेव से बोले
तुम्हें गुल्ली डंडा खेलना आता है
तुम्हें कदम्ब पर चढ़ना आता है
तुम्हें गेंद से खेलना आता है
आओ खेलें देखें कौन जीतता है
ये सुन कामदेव के नथुने फूल गए
मन ही मन बहुत गरमाया
और भुनभुना कर बोला
तुम्बडी वाले नारद
तू किसी लोक में मिल जाना
अब तेरी खैर नहीं
मुझे बच्चे से लड़ने के लिए भेज
जग हंसाई करवानी चाही
ये तो बालक है
इससे मैं क्या लडूंगा कह
कामदेव चलने को उद्यत हुआ
 जैसे ही नारद जी का नाम सुना
कान्हा ने आवाज़ लगायी
अरे अरे कामदेव क्या कहा
तुम्हें किसने भेजा है
नारद जी का नाम सुन
कान्हा बोले अच्छा
तो हमारे बाबा ने तुम्हें
यहाँ है भेजा
वो तो हमारे बड़े हैं
उनका कहना कैसे टालें
अब कहो कामदेव
कैसे लड़ना चाहते हो
सुन कामदेव की बुद्धि चकराई
लडाई में भी क्या कोई प्रकार होते हैं ?
कामदेव बोला आप ही बतलाइए
कैसे लड़ना चाहते हैं
सुन कान्हा ने बतलाया
युद्ध दो प्रकार का होता है
एक किले का युद्ध
और एक मैदान का युद्ध
कामदेव बोला ज़रा दोनों युद्धों पर प्रकाश डालो
किले और मैदान के युद्ध का फर्क बताओ
तब कान्हा ने बतलाया
किले का युद्ध वो होता है
जिसमे आदमी शादी शुदा होता है
और स्त्री एक किले का काम करती है
फिर चाहे मनुष्य कहीं जाये
पर कहीं और ना आँख लड़ाए
कामशत्रु  पर विजय पाने हेतु
स्त्री रुपी किले में
खुद को सुरक्षित पाए
और मैदान के युद्ध में
इंसान रोज हजारों लाखों
रूपवती सर्वांग सुंदरी स्त्रियों से मिले
उनके मध्य रहे और
फिर भी वहाँ से
कामरूपी शत्रु  से बच
सुरक्षित बाहर निकल आये
ये सुन कामदेव बोला
किले का युद्ध तो
ज़िन्दगी भर करता आया
आज मैदान का युद्ध भी आजमाया जाये
सुन कान्हा बोले ठीक है कामदेव
शरद पूर्णिमा की रात्रि को
तुम अपने सभी
कामबाण लेकर आ जाना
करोड़ों अरबों स्त्रियाँ होंगी
और उनके बीच हम अकेले
अपना हर तीर चला लेना
मगर ये बतलाओ
हार गए तो क्या करोगे
सुन कामदेव बोला
हारा तो आप जो कहेंगे वो  ही करूंगा
और जीता  तो जो मैं कहूं
वो आप करेंगे
सो लग गयी काम में और राम में
एक प्रमुख कारण था ये भी महारास करने का
कामदेव का मद भंग करना था
अहंकार  को चूर चूर करना था
उधर गोपियों को भी
कान्हा ने वचन दिया था
उनका मनोरथ भी पूर्ण करना था
प्रभु का कोई भी कार्य
सिर्फ एक कारण से नहीं होता
जब कई हेतु मिल जाते हैं
तब प्रभु अपनी लीला करते हैं

 क्रमश:…………

8 comments:

  1. वाह बहुत रोचक प्रसंग आगे का इन्तजार है ---बहुत सुन्दर लिखा है श्री कृष्ण लीला पर

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  2. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई

    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  3. वाह! वन्दना जी वाह!
    अति सुन्दर कथा है आपने सुनाई
    काम और कृष्ण की करवा दी है आपने लड़ाई.
    अब ना काम रहेगा,ना कोई कामना
    राधा होगी,गोपी होंगीं और होगी बस कृष्ण आराधना.

    आपकी तन्मय लेखनी का जबाब नही जी.

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|

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  5. कन्दर्प कोटि कमनीयं

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  6. यह प्रसंग इतने विस्तार से जानता न था।

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  7. बहुत ही रोचक प्रसंग है...इसे नहीं जानती थी...अगले भाग का इन्तेजार है|जय श्रीकृष्ण !!

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