Thursday, October 4, 2012

सम्पूर्णता तो सत्य में ही समाहित होती है ना .........


निचोड रही हूँ खुद को 
शायद निकल आये कोई अमलतास,
शायद मिल जाये कोई भटकी याद, 
शायद दिख जाये कोई नया ताज़्………
किसी ने कहा निकालो मंथन से 
कुछ नया कुछ अनकहा
 कुछ ऐसा जो किसी ने कभी ना कहा हो
 जिसमे जीवन दर्शन समाया हो 
और लग गयी मैं बावरी मंथन मे 
ये भूलकर मंथन जब भी होगा 
पहले तो सिर्फ़ विष ही निकलेगा 
मगर उसे कौन धारण करेगा?
मै तो विषवमन कर चुकी होंगी 
तो फिर उस विष से 
कैसे संसार को बचाऊँगी 
कलियुग है ................
अब शिव नही मिला करते 
ना ही विष्णु अवतार लिया करते हैं 
तो कहाँ और किस खोह मे रखूँगी 
उस विष को जिससे बचा सकूँ 
मिटने से हर उस जीव को 
जो सार्थक जीवन चाहता है 
बस इसी उहापोह मे 
भटकते भटकते मिला है 
एक मणिधर 
जो रखेगा कायम 
जीवन को इसके गरल को 
सत्य का बोध जब हो जाये
जीवन गरल सुधा सम बन जाये
हर गरल उसमे समा जाये
फिर विष ना कहीं नज़र आये 
हर तरफ सत्य का आभास हो
वो ही संभालेगा 
करेगा समाहित खुद में 
हर सत्य और असत्य कहे जाने वाले विष को 
सिर्फ सत्य .....दृश्य और द्रष्टा का भेद मिट जाये
या तो संपूर्ण द्रश्य सत्य को परिभाषित करे
या संपूर्ण संसार दृष्टि विलास का हास लगे 
फिर चाहे विष कहो या अमृत 
 हर कालखंड में जो पूर्ण होता है 
सत्य जो अखंड है ......एक है......... स्थिर है 
वो मणिधारी सत्य के सिवा और कौन है 
सम्पूर्णता तो सत्य में ही समाहित होती है ना ..........

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