तुम्हारी बंसी कैसी कैसी धुन सुनाती है मोहन
कभी हँसाती है कभी रुलाती है कभी तडपाती है
मगर वो धुन नही बजाती है
जिसमे सुध बुध बिसरा दी जाती है
ये भी तुम्हारी तरह निर्मोही है मोहन ………
कैसे रंग लेते हो सबको अपने ही रंग मे श्याम
एक बार मुझे भी रंग लो ना ...........
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