अखण्ड जोत प्यासी है
हरि दर्शन की अभिलाषी है
तन मन भीगा राम रस मे
फिर भी देखो प्यासी है
तृष्णा सारी मिट गयी
पल पल देखो जल रही है
प्रभु विरह में पल रही है
घर आँगन रौशन कर रही
प्रभु स्नेह को तरस रही है
ये कैसी तुम्हारी महिमा न्यारी है
दर्शन दे दो कृपानिधान
जन्म जन्म की प्यासी है
ये तुम्हारी दिव्य ज्योति सुकुमारी
दिव्य दर्शनों की अभिलाषी है
अखंड जोत प्यासी है
प्रभु अखंड जोत प्यासी है .............
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