जब से वैराग्य की मांग निकाली है
भक्ति का सिंदूर डाला है
ज्ञान का सागर बहने लगा
ह्रदय में कम्पन होने लगा
प्रेम का अंजन
अश्रुओं मे बहने लगा
मन मयूर नृत्य करने लगा
सांवरा मन मे बसने लगा
नित्य रास करने लगा
अब तो मधुर मिलन होने लगा
प्रेमरस बहने लगा
द्वि का परदा हटने लगा
एकाकार होने लगा
ब्रह्मानंद मे मन डूबने लगा
"मै" का ना कोई भान रहा
"तू" मे ही सब समाने लगा
आह! कृष्ण ये मुझे क्या होने लगा
जहाँ ना मै रहा ना तू रहा
बस अमृत ही अमृत बरसने लगा
आनन्द सागर हिलोरें लेने लगा
पूर्ण से पूर्ण मिलने लगा
ओह ! संपूर्ण जगत स्व- स्वरुप दिखने लगा
आनंद का ना पारावार रहा
आहा ! श्याममय आनंदमय
रसो वयि सः निज स्वरुप होने लगा
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