मैं राख का अंतिम श्वास बन जाती .......जो तुम होते
मैं मुखाग्नि का अंतिम कर्म बन जाती .......जो तुम होते
मैं कच्चे घड़े संग चेनाब पार कर जाती .......जो तुम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
जो तुम होते ........एक श्वास धरोहर बन जाती
जो तुम होते ........एक कर्म की मुक्ति हो जाती
जो तुम होते ........एक मोहब्बत परवान चढ़ जाती
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
हो सकता ऐसा मुमकिन .........गर हम होते
ऋतु बसंत भी मदमाती .........गर हम होते
एक दीपशिखा जल जाती ........गर हम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अश्रुबिंदु ना कभी ढलकाते ...........जो प्रियतम होते
विरह अगन ना कभी सताती ........जो प्रियतम होते
इश्क की ना दास्ताँ बन पाती ........जो प्रियतम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
ना तुम होते ना हम होते ........ये सृष्टि किस पर मदमाती
ना तुम होते ना हम होते .......ये प्यास अधूरी रह जाती
ना तुम होते ना हम होते .......तो प्रेम में अपूर्णता रह जाती
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........खोजत्व पूर्ण हो जाता
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........निजत्व पूर्ण हो जाता
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........शिवत्व पूर्ण हो जाता
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अधूरी प्यास, अधूरा तर्पण , अधूरा जीवन .........जरूरी था
जीवन की इकाइयों दहाइयों में अधूरापन ..........जरूरी था
प्रेम का अपूर्ण ज्ञान , अपूर्ण आधार .............जरूरी था
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अपूर्णता में सम्पूर्णता का आधार ही तो
व्याकुलता को पोषित करता है .......सत्य था , है , रहेगा
जन्म जन्म की प्यास का अधूरापन ही तो
घूँट भरने को लालायित करता है .......सत्य था , है , रहेगा
मिलन पर विरह का स्वाद ही तो
ह्रदय रुपी जिह्वा को आनंदित करता है...........सत्य था , है , रहेगा
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
मैं मुखाग्नि का अंतिम कर्म बन जाती .......जो तुम होते
मैं कच्चे घड़े संग चेनाब पार कर जाती .......जो तुम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
जो तुम होते ........एक श्वास धरोहर बन जाती
जो तुम होते ........एक कर्म की मुक्ति हो जाती
जो तुम होते ........एक मोहब्बत परवान चढ़ जाती
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
हो सकता ऐसा मुमकिन .........गर हम होते
ऋतु बसंत भी मदमाती .........गर हम होते
एक दीपशिखा जल जाती ........गर हम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अश्रुबिंदु ना कभी ढलकाते ...........जो प्रियतम होते
विरह अगन ना कभी सताती ........जो प्रियतम होते
इश्क की ना दास्ताँ बन पाती ........जो प्रियतम होते
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
ना तुम होते ना हम होते ........ये सृष्टि किस पर मदमाती
ना तुम होते ना हम होते .......ये प्यास अधूरी रह जाती
ना तुम होते ना हम होते .......तो प्रेम में अपूर्णता रह जाती
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........खोजत्व पूर्ण हो जाता
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........निजत्व पूर्ण हो जाता
अच्छा हुआ जो ना मिले कभी .........शिवत्व पूर्ण हो जाता
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अधूरी प्यास, अधूरा तर्पण , अधूरा जीवन .........जरूरी था
जीवन की इकाइयों दहाइयों में अधूरापन ..........जरूरी था
प्रेम का अपूर्ण ज्ञान , अपूर्ण आधार .............जरूरी था
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
अपूर्णता में सम्पूर्णता का आधार ही तो
व्याकुलता को पोषित करता है .......सत्य था , है , रहेगा
जन्म जन्म की प्यास का अधूरापन ही तो
घूँट भरने को लालायित करता है .......सत्य था , है , रहेगा
मिलन पर विरह का स्वाद ही तो
ह्रदय रुपी जिह्वा को आनंदित करता है...........सत्य था , है , रहेगा
ओह ! मेरे किसी जन्म के बिछड़े प्रियतम
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